मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

वो सावन के गीत

गीत शब्द सुनते ही हमारे मन में वह गांव की उन महिलाओं का दृश्य उभर कर सामने आता है , जो शादी ब्याह के रस्मों में , बच्चों के जन्मदिन पर और धान  रोपने के गाती गीत मन को मोह लेने वाली होती थी ।

ग्रामीण क्षेत्रों में सावन के महीनों में गांव की महिलाएं एक साथ सुर में सुर मिला कर रिमझिम पड़ती बूंदों के साथ और वर्षा से बचने के लिए पत्ता या पॉलिथीन का घोंघ ओढ़ कर धान रोपनी की गीत गाती थी तो लगता था की सावन अपने पूरे शबाब पर है ।

सावन भी मानो उनके को सुनकर इतरा इतरा कर बरस रही हो । दिन भर झुककर धान रोकने की इस गीत से थकान मिट जाता था । गीत और पानी की बूंदों के साथ और एक आवाज फिजाओं में गूंजती थी वह था हरवाहा (हल चलाने वाला) की आवाज जो अपने बैलों को हांकने में व्यस्त रहता था हा हा चल चल उसके आवाज के साथ मानो बैलों की घंटियां भी ताल से ताल मिला रही हो ।

जिन किसानों के घर से खाना आ गया हो वह इस बारिश में छाता लेकर खेत के आर मैं बहुत मजे से खाना खा रहा हो जो भी रूखी सुखी घर से आया हो । उस बारिश के पानी में भीगने से अभी की तरह ना तो सर्दी खांसी होती थी नहीं कोई दिक्कत होता था ।

 पर वह दिन अब कहां अभी तो हल जगह नई तकनीक ट्रैक्टर ने ले ली है और धान रोपने वाली महिलाएं भी लगता है गीत गाना भूल गई है ।

सीता जी को रामजी से मुंह दिखाई में क्या मिला था ?

क्या आप जानते हैं भगवान विष्णु जी को नरसिंह अवतार क्यों लेना पड़ा था ?

चरित्र

क्या आप जानते हैं ? हनुमान जी को सिंदूर क्यों चढ़ाया जाता है।

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क्यों रहना पड़ा था सीता जी को श्री लंका में 

शनिवार, 14 दिसंबर 2019

सीता जी को रामजी से मुंह दिखाई में क्या मिला था ?

जब श्री राम और सीता जी की शादी हुई और सीता  जी अपने ससुराल आ गई । सीता जी के साथ उनकी तीन बहने और राम जी के तीनो भाई भरत ,लक्ष्मण, और शत्रुघ्न भी घर आ गए । विवाह का समय ऐसे ही चहल पहल रहता ही है, उसमें भी चार चार जोड़ों की शादियां इसमें सबका खुशी चार गुनी बढ़ गई । सब हर्ष उल्लास के साथ विवाह का जश्न मना रहे थे पूरे अयोध्या नगर मैं ढोल नगाड़े बज रहे थे, वहां की औरतें बधाइयां गा रही थी ।


उत्सव ऐसा था कि इस उत्सव में शामिल होने के लिए देवता भी इस लालाहित थे । खाने-पीने की कमी नहीं थी जगह-जगह पर खाने पीने की व्यवस्था थी । प्रजा बहुत खुश थी होता भी क्यो नही उनके चहेते राजकुमारो की विवाह का उत्सव था, खास करके श्रीराम की विवाह की । क्यो कि सब जातने थे की श्री राम रघुकुल दीपक अयोध्या के भावी सम्राट है। राम के प्रति अयोध्या वासियों का अथाह स्नेह देख कर लगता था , कि उन्हे राजा के रूप में कोई खजाना मिलने वाला हो ।



वे सब उन्हे राजा बनते देखना चाहते थे।  तीनो माताओं सबसे लाडला श्री राम ही थे, पिता दशरथ जी की तो श्री राम  की शांत स्वभाव गुरुजनो के प्रति आदर छोटो के प्रति स्नेह और प्रजा की पुत्र वत ध्यान रखना ये सब गुण देख कर दशरथ जी खुशी से मंत्रमुग्ध हो जाते, गर्व सर ऊँचा हो जाता है। ऐसे भी यदी बेटा  कोई अच्छा काम करता हो तो देश दुनियाँ मे उनका यस फैल जाता है यहां तो राम जी गुणों की खान है , एक बाप के लिए और क्या चाहिए दूसरे के मुख से अपने बेटे की प्रशंसा सुनकर राजा दशरथ खुशी से फूली नहीं समाते , दशरथ जी को एक नहीं चार चार गुणवान पुत्रों का पिता होने का गौरव प्राप्त था । शादी के बाद जो भी नेग होना था वह सब हुआ ।



 अब बारी था मुंह दिखाई का हमारे भारतवर्ष में शादी के बाद पहली बार बहू (नई दुल्हन) घर आती है तो उसके ससुराल वाले बहू  को कुछ उपहार देते हैं ,जिसे मुंह दिखाई कहां आता है । यह रस्म भारत में लगभग सभी समुदायों में मनाया जाता है । सीता जी के साथ भी वही रस्म निभाया गया राजा दशरथ जी ने अपने सभी पुत्र बंधुओं को अपनी इच्छा अनुसार उपहार दिए । तीनों सासुओ ने भी सीता जी को उपहार भेंट किए । जितने भी लोग राजा , महाराजा,  प्रजा जो भी इस विवाह में शामिल हुए सब ने सीता जी को कुछ ना कुछ उपहार दिए ।


जब रात को श्री रामजी महल में गए तो सीता जी से उनकी मुलाकात हुई ।रामजी सीता जी से बोले सीते आपको सबने कुछ ना कुछ उपहार मुंह दिखाई स्वरूप दिए पर हमने आपको कुछ नहीं दिया यह बात आपको भी ठीक नहीं लग रहा होगा । पर ऐसा बात नहीं है मैं आपको मुंह दिखाई का उपहार जरूर दूंगा । हमारे यहां राजा महाराजाओं में एक बहू पत्नी का प्रथा है जिसमें राजा एक से अधिक शादियां कर सकता, पर मैं आपको वचन देता हूं की कोई दूसरी शादी नहीं करूंगा । आपके सिवा मेरी जिंदगी में कोई नारी नहीं आएगी यही आपको मेरे तरफ से मुंह दिखाई का उपहार है ।

शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

क्या आप जानते हैं भगवान विष्णु जी को नरसिंह अवतार क्यों लेना पड़ा था ?



बात उस समय की है जब पृथ्वी पर दो असुर भाइयों का उत्पात चरम सीमा पर था । इन असुरो में बढ़ा का नाम हिरनाकश्यप और छोटे का हिरणाख्य था।आज हम बात कर रहे है बड़े  भाई हरनाकयशप की।
यह दोनों बहुत ही बलशाली असुर थे यह अपने राज्य में यह घोषणा करवा दी थी कि भगवान की पूजा कोई ना करें मैं ही भगवान हूं सब कोई मेरी पूजा करें विशेष कर विष्णु जी से  ज्यादा नफरत करते थे ।क्यों की बिष्णु जी ने ही उसके भाई हिरणाख्य को बरहा अवतार ले कर मारा था।ये असुर कितने वलसाली थे इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की दो भाइयो को मारने के लिए भगवन को दो बार अवतार लेना पड़ा। इस
असुर ने संसार में इतना भयंकर उत्पात मचाया था की ऋषि मुनि देवी देवता मनुष्य सब त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं सबको लगा अब क्या होगा हमें इस दुष्ट  से कौन छुटकारा दिलाएगा ऋषि मुनि सब यज्ञ,जाप,ध्यान,पूजा अर्चना नहीं कर पा रहे थे कोई भी काम जिसमें भगवान की आराधना हो उसके राज्य में निषेध था। यदि उन्हें एवं के सैनिकों को यह पता चल जाता कि फलाने जगह पर भगवान की आराधना पूजा हवन हो रहा हो तो वहां जाकर वे  मारकाट मचा देते और कहते भगवान की पूजा क्यों कर रहे हो हमारे राजा ही हमारे और सबके भगवान हैं, उन्ही की पूजा करो।ऐसी प्रताडना से प्रजा त्राहिमाम - त्राहिमाम कर रही थी पर क्या किया जाए जो उसे सता रहे थे उन्हें परास्त करना किसी देवी देवता या किसी मनुष्य से संभव नहीं था । क्योंकि हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी से वरदान मिला हुआ था ।


जब हरीनाकश्यप अमर होने के लिए तपस्या करने लगा ।वह बर्ह्म जी की घोर तपस्या में लग गए सालों साल तपस्या करते रहे बहुत दिनों तक तपस्या करने के बाद जब बर्ह्म जी आकर  उनसे पूछा कि वत्स वरदान मांगो। तो वह बड़ी ही बड़ी ही विनम्रता से हाथ जोड़ कर कहा हे जगत के पालनकर्ता अगर आप मेरे तपस्या से प्रसन्न है तो मुझे अमरत्व का वरदान दे कर मुझे अमर कर दे।
बर्ह्म जी ने बोले हे असुर राज अमरत्व का वरदान में नहीं दे सकता इसके सिवाय तुम जो भी कुछ मांगोगे में देने के लिए तैयार हूँ। पर वो मन नहीं और बोला मुझे अमर ही होना है इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए। इतना कह वह फिर से तपस्या में लग गया। ऐसे ही कितनी बार बर्ह्म जी आये  पर वह हर एक बार यही  बोले कि मुझे अमर कर दीजिए ब्रह्माजी बोले अमर करना मेरे हाथों में नहीं है जो जीव जन्म लिया है उसे मरना पड़ेगा यही बिधि का विधान है। पर वो नहीं मना । इस घनघोर तपस्या को देख देवता लोग भी  पर डरने लगे , उन्हें ये दर सताने लगा की यदि ये अमर का वरदान प् लेता है तो कंही हम लोग से स्वर्ग न छीन ले । तप इतना प्रचंड था की  ठंडी के दिन में पानी में खड़ा होकर गर्मी के दिन में चारों तरफ आग जलाकर असुर  घोर तपस्या करता रहा अंतिम में ब्रह्माजी बोले वत्स मैं तुम्हें अमरता का वरदान नहीं दे सकता तुम चाहो तो और कुछ मांग सकते हो हिरण्यकश्यप ने सोचा कि मैं कुछ ऐसा मांगूंगा जो अमर से कम ना उसने बर्ह्म  जी से मांगा  दिन में भी ना मरु और रात में भी ना मरू , अस्त्र से ना मरु ना ही शस्त्र से मरु , सुबह भी  न मंरु शाम को भी ना मरू ,  दिन में भी नहीं और रात में भी नहीं,  घर में भी नहीं बाहर में भी नहीं,ना मनुष्य से ना पशु से  मेरी मोत नहीं हो । यह सब वरदान बड़ी सोच उसने माँगा समझकर मांगा । हरिणकश्यप की बाते सुन बर्ह्मजी कुछ सोचे फिर  उन्हें तथास्तु कह दिए उन्हें यह वरदान दे दिया वरदान पाकर अपने आपको वह अमर समझकर तीनों तीनों लोगों को अपने अधिकार में ले लिया यही कारण था कि वह अपने आप को भगवान घोषित करके सबसे पूजा करवाता क्योंकि भगवान भी अमर होते हैं और उसने सोचा मैं भी अमर हूं ।

ऎसे ही बहुत दिनों तक चलता रहा ।बहुत दिनों के बाद उसके घर एक बालक का जन्म हुआ बालक का नाम रखा गया प्रह्लाद । प्रह्लाद का जन्म होते ही राजा रानी ख़ुशी से झूम उठे। बड़े ही लाड़ से प्रह्लाद का पालन पोसन होने लगा । जब वे पाठशाला जाने लायख हुए तो माता पिता उसे गुरु जी के आश्रम शिक्षा के लिए भेज दिया। आश्रम में वो पढ़ाई के साथ - साथ श्री हरी नाम संगकृतंन् करने लगा और अपने साथ पड़ने वाले बच्चों को भी भजन कीर्तन करवाने लगा।वे पढ़ाई कम हरी भजन में ज्यादा मन लगता था। ये   नारायण नारायण  जप सब बच्चों से करवाता था।उसके गुरु को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत बार समझाया की तुम दुश्मन का नाम क्यों ले रहे हो यदि ये बात तुम्हारे पिता जी के पास पहुँचा तो तुम्हारे लिए और मेरे लिए भी ठीक नहीं होगा।  पर प्रह्लाद पर इसका कोई असर नहीं हुआ। कितने बार गुरु जी से उन्हें मर भी पड़ी। थक रार कर गुरु जी उन्हें महराज के पास ले गए और पूरी कहानी सुनाया। प्रह्लाद के पिजा जी भी उन्हें समझाया और दुश्मन ला नाम न लेने की बात कही पर प्रह्लाद नहीं माना । वह तो मानो हरी रंग में रंग चूका था । उलटा अपने पिताजी को ही समझाने लगे हे पिता जी आप जिसका नाम जपने  से हमें मना कर रहे है आपको पता है , वही संसार के सार है , वही सब का पालन करता है , वही सबके माता-पिता है ,वही सबके भाई बन्धु सखा है , वही पुरे डांसर के रचेता है , वही संसार के कण-कण में है । इस लिए पिता जी आप भी मेरे साथ उनके शरण में आ जाइये आपका भला होगा। 


तब हिरण्यकश्यप को बहुत गुस्सा आया और अपने सैनिको को प्रह्लाद को मारने का हुक्म दे दिया । प्रह्लाद को मारने के लिए सैनिकों ने उसे  पहाड़ की  चोटियों से नीचे फेंक दिया उतना दूर से गिरने पर भी प्रह्लाद को लगा कि वह फूलों की सेज पर आकर गिरा हो। उसके बाद  सैनिकों ने उसे  जहरीले सांपों से भरे कुएं में उसे छोड़ दिया वह सांप भी  उसको नहीं काटा । उसके बाद  खोलते हुए तेल में प्रह्लाद को बैठा दिया गया उसके बाद भी प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ वह हरि का नाम लेते रहा।अंतिम में हिनाकश्यप थक हार कर अपनी बहन होलिका से बात की होलिका को ब्रह्मा जी से   आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका ने अपने भाई से कहा   महाराज आप मुझे एक मौका दें मैं इसे जला के मार दूंगी क्योंकि मैं आग में जलती नहीं हूं और एक लकड़ी के ढेर में बैठ गई और सैनिकों से बोली कि  आग लगा दो क्योंकि होलीका तो जलेगी नहीं प्रह्लाद जल के मर जाएगा लकड़ी के ढेर में आग लगा दी गई आग जला होलिका जल गई प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। सब तरह से जतन कर के देख लेने के बाद जब प्रह्लाद बध नहीं हुआ तो अंत में भरी सभा में हिरनाकश्यप प्रह्लाद से पूछा कि  इतना जतन करने के बाद भी तुम्हें मृत्यु नहीं आई तुम्हारे भगवान कहां है मैं देखना चाहता हूं और नहीं तो मैं तुम्हें अभी अपने तलवार से मार दूंगा बताओ तुम्हारे भगवान कहां प्रह्लाद ने बड़ी मासूमियत से कहा पिताजी भगवान हर एक कण - कण में है  जल में थल में अग्नि में आकाश पाताल पवन में हममें तुममें तलवार में इस खंभा( सामने खम्भे की और इसरा करते हुआ) में सब जगह हरी  विराजमान है बस उनको देखने के लिए एक भक्त की आंख होनी चाहिए इतना बात सुनकर हरीनाकश्यप ने अपनी गधा उठाए और बोले कि   तुम्हारा भगवान हर एक जगह है तो  तुम्हारा भगवन इस खंभे मैं भी निकलना चाहिए प्रह्लाद ने कहा हाँ  जरूर  निकलेगा तब हिरण्यकश्यप ने अपने गदा से  उसको उस खम्भे पर प्रहार किया ।


प्रहार इतना जोरदार था की खंभा भरभरा का जमीन पर बिखर गया। तब उसी टूटे हुआ खम्भे के जगह से  भगवान नरसिंह (नरहरि) विराजमान थे नरसिंह का  मतलब शरीर नर (मनुष्य ) का और सर सिंह का इसलिए उन्हें नरहरी भगवान भी कहा जता है या नरसिंह नरसिंह भगवान कहा जाता है । नरसिंह को हरीनाकश्यप जेसे ही मारने उठा भगवन ने  अपने भुजाओं से उठा लिया  और ले जाके घर और बाहर के बीच देहरी( दरवाजा या  चौखट) पर बैठ गये।और  हरीनाकश्यप को अपने गोदी रख लिया। सोचने वाली बात है की ब्रह्मा जी से जो उन्हें वरदान मिला था उसमें यह था कि घर में ना बाहर में तो नरहरी जी उन्हें घर में भी नहीं और बाहर में भी नहीं जो घर का डेयरी बना होता है वह घर भी नहीं होता और बाहर भी नहीं होता उसमें बैठ गए ना दिन ना रात सूरज डूबने के बाद और अंधेरा होने से पहले का जो समय होता है वह न दिन होता है और ना रात होता है वह संध्या काल कहा जाता है । अस्त्र से ना शस्त्र उनके पास कोई अस्त्र था ना कोई शस्त्र था उनके पास बड़े-बड़े नाखून थे। और एक बात ना मनुष्य पशु वह न मनुष्य थे और ना पशु  दोनों का मिल कर नरसिंह बने है  धड़ ( शारीर)  मनुष्य का का और सिर सिंह का देहरी पर बैठकर उन्होंने अपने गोदी में हरीनाकश्यप को लेकर अपने नाखूनों से उसका अदर (छाती) चीर दिया  और उनका वध कर दीये।
बधकरने के बाद जोर-जोर से गर्जना करने लगे गर्जना इतना भयंकर था कि तीनों लोग इससे भयभीत हो गए सब देवी देवता वहां पहुंचे और सबने  जाकर प्रह्लाद से कहा कि प्रह्लाद तुम ही इन्हें शांत  कर सकते हो तुमसे ही शांत होंगे तब जाकर प्रल्हाद में नरहरी जी को शांत करने के लिए प्रर्थना किया तब भगवन शांत हो गए।  सभी देवी देवता मिलकर भगवन नरसिंह जी स्तुति की और हरीनाकश्यप का राज प्रह्लाद को सौंप कर सब अपने-अपने घर चले गए गए । आगे चलकर यह प्रह्लाद बहुत ही प्रतापी राजा बने । हरीनाकश्यप के लिए ही  श्री विष्णु भगवान को नरसिंह का अवतार लेना पड़ा ये बिष्णु जी की दश अवतारों में से एक हैं ।।                            बोलिए एक बार नरसिंह  भगवान                              की जय।
चरित्र

क्या आप जानते है ? हनुमान जी को सिंदूर क्यों चढ़ाया जाता है।

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क्यों रहना पड़ा था सीता जी को श्री लंका में ?

भारत का सबसे बड़ा मंदिर कँहा पर स्थित है।

क्यों नहीं हो सका था श्री राम जी और सीता का विवाह शुभ महुर्त में?



रविवार, 20 अक्टूबर 2019

चरित्र (Character)

चरित्र शब्द दिमाग में आते ही एक ही व्यक्ति की छवि मन में उभरती है श्री राम जी । एक ही सबसे ज्यादा चरित्रवान मनुष्य पूरे ब्रह्मांड में हैं हुए हैं श्री रामचंद्र जी । यदि चरित्र अपनाना हो तो इन्हीं का चरित्र अपनाना चाहिए ।
Pauranik ktha

ऐसे तो श्री राम जी चरित्र , मर्यादा , पितृ भक्ति, दयालुता की खान है । इसलिए उनका एक और भी नाम है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम । चरित्र मनुष्य की बहुत बड़ी पूंजी होती है जो मनुष्य को बहुत कष्टों से बचाती है ।
Ram katha Ram bada ya ram kanam

यदि आपका चरित्र साफ है तो आपको गांव , समाज , कुटुंब में आपका मान प्रतिष्ठा की बृद्धि होगी । समाज के लोग आपको सम्मान के दृष्टि से देखेंगे समाजिक कार्यों में आपको ऊंचा स्थान प्राप्त होगा ।
Ramayan-hindi-story.

उदाहरण के तौर पर यदि आप किसी गांव मोहल्ले में रहते हो आपका चरित्र साफ सुथरा है ये सबको पता है । आप कोई भी बुरा काम नहीं करते हैं कभी किसी से लड़ाई नहीं करते हैं कोई बुरी संगत में नहीं रहते हैं ।
Largest temple of india

संयोगवश आपका किसी से झगड़ा हो जाता है लड़ाई झगड़ा में कब किसको गाली गलौज कर दे या मारपीट कर दे पता नहीं चलता आदमी कितने भी शांत स्वभाव के हो गुस्से में कुछ ना कुछ हो ही जाता है ।


उसके बाद जिससे आपका झगड़ा हुआ है वह आपको पंच के सामने खड़ा करेगा यह आप पर कोर्ट में केस कराएगा । उस समय आपको अपने स्वच्छ और साफ-सुथरी चरित्र का लाभ मिलेगा । यदि गलती उसकी है तो सब लोग आपके साथ रहेंगे ही , पर यदि गलती आपका भी हो तो भी के पक्ष में बहुत से लोग खड़े रहेंगे और दूसरे लोगों को भी यह समझाने की कोशिश करेंगे की यह आदमी ऐसा गलती है नहीं कर सकता क्योंकि यह आदमी एक चरित्रवान आदमी है।


 इसका चरित्र साफ है । भले ही इस झगड़े में आपका ही दोस्त क्यों ना हो पर साफ-सुथरी चरित्र के कारण आपको ही जीत मिलेगी चाहे गांव के पक्ष में हो या कोट मैं जज के सामने और और यदि आपका दोष सिद्ध भी हो जाता है तो भी आपका पिछला रिकॉर्ड देखते हुए आपसे नरमी बरती जा सकती है ।


इसलिए अपने चरित्र को साफ रखिए कभी भी ऐसा काम मत कीजिए जो समाज के नजर में गलत हो यदि आप गलत काम के आदि है आप शराब पीते हैं जुआ खेलते हैं या ऐसा कोई भी काम करते हैं जिसने समाज को गंदा करता हो तो आप पर कोई विश्वास नहीं करेगा यदि आप किसी से झगड़ते हैं ।


तो आपका दोष नहीं रहने पर भी सबके नजर में आप ही गुनहगार होंगे और सब कोई आप ही को दोषी पर ठहराएंगे । इसलिए अपने आप को गलत कामों से दूर रखें श्री राम के बताए हुए मार्ग पर चलने की कोशिश करें यदि आप उसमें तो चार परसेंट भी बताएं मार्ग पर चलते हैं तो आप घर गृहस्ती में कभी असफल नहीं होंगे और अपने गृहस्थ जीवन को बड़े ही आसानी और कुशलता के साथ चला पाएंगे ।                                                                 ।।जय श्री राम।।              

सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

क्या आप जानते हैं ? हनुमान जी को सिंदूर क्यों चढ़ाया जाता है।

 You know? Why is vermilion offered to Hanuman ji.                                                 Kya aap jante hai Hnuman ji ko sindur kyo chadaya jata hi.

हिंदू धर्म के अनुसार यह माना जाता है कि सिंदूर सिर्फ देवियों को चढ़ाया जाता है पर हनुमान जी ऐसे देवता हैं जिन्हें सिंदूर चढ़ाया जाता इसका कारण भी बहुत मजेदार है ।


बात उस समय की है जब श्री रामचंद्र जी बनवास से लौटकर अपने राजकाज में रम गए थे । प्रजा बहुत खुशहाल थी ऐसे राजा पाकर पूरे अयोध्या नगर में प्रजा बहुत खुश थे और रामचंद्र भी अपने प्रजा को अपने पुत्र के समान मानकर राज करते थे ।


हनुमान जी अयोध्या में ही थे एक दिन माता सीता अपने महल में सिंदूर लगा रही थी । माता को सिंदूर लगाते देख हनुमान जी बड़ी कोतुहल के साथ देख रहे थे । एक तो जाति के बंदर और दूसरे हनुमान जी अपने स्वभाव से चंचल उन्हें यह सोचकर बड़ी आश्चर्य हो रहा था कि आखिर माता यह लाल चीज अपने सर पर क्यों लगा रहे हैं।


 हनुमान जी धीरे धीरे माता सीता के करीब गए और बड़ी उत्सुकता के साथ माता जी से पूछ लिया हे माते आप यह लाल चीज क्या लगा रही हैं । माता को हनुमान जी के आवाज में एक निश्चल , अबोध बालक का आवाज सा प्रतीत हुआ । हनुमान जी से माता सीता का रिश्ता एक बेटे की तरह ही था और हनुमान जी भी सीता जी को अपनी मां हे मानते थे ।


ऐसा सवाल सुन मां सीता ने हनुमान जी को समझाते हुए बोले यह सिंदूर है शादीशुदा महिलाएं इसे अपने मांग में लगाती हैं । फिर हनुमान जी ने बड़ी भोलेपन से कहें इससे लगाने से फायदा क्या होता है सीता जी कोई जवाब नहीं सूझा उसने सोचा सीधा- साधा सा कोई जवाब इनको दे देता हूं नहीं तो यह ऐसे ही मुझे सताता रहेगा ।


 माता सीता ने हनुमान जी से कहे यह सिंदूर लगाने से आपके स्वामी और मेरे पति श्री रामचंद्र जी बहुत प्रसन्न हो जाते हैं ।इतना कह सीता जी हनुमान जी से पिंड छुड़ा कर दूसरी तरफ चली  गई । हनुमान जी वहां बैठे बैठे सोचने लगे । उधर सीता जी हनुमान जी को समझाने के बाद श्री रामचंद्र के पास जाकर बैठ गए और हनुमान जी से हुए वार्तालाप को राम जी की सुना रहे थे कह रहे थे की हनुमान कैसे एक बालक की तरह मुझसे सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं थे ।


 यह सब बात हो ही रहा था की अचानक दोनों की नजर उधर से आते हुए हनुमान जी पर पड़े पहली नजर में तो वे समझ ही नहीं पाए थे कि यह कौन है क्योंकि उनका पूरा शरीर लाल ही लाल वह अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगाकर लाल हो गए थे । राम जी हंसते- हंसते हनुमान जी से बोले हे हनुमान आपने अपना यह दशा कैसी बना ली हनुमान जी सामने आकर हाथ जोड़कर बोल।


 हे प्रभु माताजी सिंदूर लगा रही थी तब मैंने पूछा कि आप सिंदूर क्यों लगा रहे हैं तब माताजी ने मुझसे कहीं की सिंदूर लगाने से आप प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए माता ने सिंदूर लगाई मैंने सोचा यदि थोड़ा सा सिंदूर लगाने से आप खुश हो जाते हैं तो क्यों ना मैं पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लू इससे आप कितना खुश हो जाएंगे । हनुमान जी के बातों से राम और सीता जी बहुत प्रसन्न हुए उनके सेवा भाव अपने स्वामीको खुश करने की सोच वे बहुत प्रसन्न हुए ।


 सच्चा सेवक का काम हमेशा ही अपने मालिक को खुश रखने का होता है और यह तो पूरा संसार जानती है कि हनुमानजी से बड़ा कोई सेवक नहीं हुआ । हनुमान जी के सेवा भाव से श्री रामचंद्र जी और माता सीता जी ने हनुमान जी को यह आशीर्वाद दिया की आज से तुम्हें जो सिंदूर चढ़ आएगा उसकी हर एक मनोकामना पूर्ण होगी । इसलिए हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाया जाता है।
               (स्रोत रामायण)
      

बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

रामायण की रोचक कहानियां- राम बड़ा या राम का नाम ?

बात उस वक्त की है जब श्रीराम अपनी वानर सेना लेकर लंका जाने के लिए सागर तक पहुंचे थे । वहां पहुंचने के बाद जब श्रीराम ने विशाल समुद्र को देखा तब राम जी चिंता में पड़ गए कि आखिर लंका तक कैसे जाया जाएगा वह भी अपनी सेना के साथ । तभी अम्बुवान सहित सभी लोगों ने उन्हें समुद्र से रास्ता देने की आग्रह करने की सलाह दी । श्री राम जी ने समुद्र जी को प्रसन्न करने के लिए कई दिनों तक पूजा अर्चना की । पूजा अर्चना से जो समुद्र जी दर्शन नहीं दिए तब श्री राम जी का धैर्य जवाब दे दिया ओर अपना गांडीव उठा है और उसमें बान चढ़ा दिया और क्रोधित होकर उसने कहा कि यदि यह समुद्र मुझे रास्ता नहीं देगी तो मैं इस समुद्र को ही सिखा दूंगा ।


यह देख समुद्र जी हाथ जोड़कर श्री राम के चरणों में गिर पड़े , उन्होंने अपनी मजबूरी सुनाएं महाराज यदि मैं अपने जल से आपको श्रीलंका जाने के लिए रास्ता दे दूं तुम मेरे जल में बहुत सारे जीव जंतु हैं वह मर जाएंगे इसलिए मैं आपको रास्ता देने में असमर्थ हूं । यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं एक बीच का रास्ता आपको बताता हूं, यदि आप मेरे ऊपर से सेतु बना कर श्रीलंका तक चले जाएं तो इसमें किसी का नुकसान नहीं होगा आपका काम भी हो जाएगा ।


 तब राम से बोले क्या यह संभव है, तब समुद्र जी ने श्री राम जी को उपाय सुझाया भगवान आपकी सेना में नल नील नाम के दो वानर योद्धा है वे विश्वकर्मा जी के पुत्र हैं वह शिल्प कला में बहुत ही निपुण और खास बात एक यह भी है की उन्हें एक श्राप है की वे जो भी वस्तु जल मैं फेकेंगे वह डूबेगा नहीं । इतना कहकर समुद्र जी अंतर्ध्यान हो गए। उसके बाद जी ने नल और नील को बुलवाया और सब बातें बताएं ।


 नल और नील श्री रामचंद्र के बात से पुल बनाने के लिए तैयार हो गए पर उन्होंने एक शर्त रखी की हर एक पत्थर पर पहले राम नाम लिखेंगे उसके बाद पानी में डाला जाएगा सब ने उसके शर्त मान लिया । सेतु बनाने का काम शुरू हो गया बहुत ही जोर शोर से काम चल रहा था। सभी बंदर और भालू इस काम में बड़े उत्साह के साथ लगे गए जिससे जितना बड़ा पत्थर उठ पाता वह उतने बड़ा पत्थर लेकर नल नल के पास पहुंच जाते वहां हर एक दिशाओं में जय श्री राम की नारा गूंज रही थी।


एक दिन श्री राम जी संध्या के समय समुद्र तट पर  एकांत में बैठे थे अगल बगल कोई नहीं था श्री राम जी के मन में वह बात याद आई जो नल नील ने कहा था की बिना राम नाम लिखें मैं पत्थर पानी पर नहीं डालूंगा । उन्होंने सोचा यदि राम नाम लिखने से पत्थर पानी में तैरने लगे मैं खुद राम हूं, मैं देखता हूं एक पत्थर फेंक के पानी में तैरता है या नहीं यह सोच रामजी ने एक छोटे से पत्थर के टुकड़े को लिए और पानी में दे मरा पानी में पत्थर पडते ही डूब गया।


 राम जीे बड़े आश्चर्यचकित हुए, राम नाम लिखा पत्थर तैर रहा था और राम ने जो पत्थर अपने हाथो से पानी ने डाले वह डूब गया । यह सब घटना हनुमान जी कुछ दूर से देख रहे थे उन्होंने राम जी के सामने आकर हाथ जोड़कर बोले प्रभु आप यही सोच रहे होंगे कि मेरा नाम लिखा हुआ पत्थर पानी में तैर रहा है और मेरा फेंका हुआ पानी पत्थर पानी में क्यों डूब गया मेरे साथ भी ऐसा ही होता है आप साक्षात भगवान श्रीराम हैं पर आप उड़ नहीं सकते और मैं आपका सेवक आपका नाम लेते ही हवा में उड़ जाता हूं इसलिए हे प्रभु आप तो बड़े हैं पर आपका नाम आपसे से भी बड़ा है।                               ।।इसलिए राम से भी बड़ा है राम का नाम।।
                                     (स्रोत रामायण)     


                   

रविवार, 22 सितंबर 2019

क्यों रहना पड़ा था सीता जी को श्री लंका में ?

बात उस समय की है,जब राम और सीता जी की शादी हो चुकी थी।दोनो एकांत में बेठ कर वार्तलाप कर रहे थे।उस समय सीता जी ने राम जी से कहा प्रभु मे बहुत दिनो से आप से एक बात कहना चाह रही हुँ। श्री राम जी मुस्कुराते हुँ कहे कहिए क्या कहना चाहती है आप।सीता जी बोली जब में आपको पहली बार जनकपुर की पुष्प बाटिका में देखा था उसी समय मन ही मन में एक  मन्नत माँगी थी ,कि यदि आप मुझे पति रूप में मिल जाते तो में व्रह्ममण भोजन कराऊगी ।अब जब आप मुझें पति रूप में मिल गये है तो अपना मन्नत पुरी करना चाहती हुँ।राम जी बोले इस में क्या बडी बात है, हमारे राज्य में व्रह्ममनो की कमी है,क्या? जब आप चाहेंगी तब मे तब में एक क्या कई व्रह्ममन को बुला लुंगा, आप अपना मन्नत पुरी कर लिजीएगा ।                                                                                                           तब सीता जी बोली में ऐसे तैसें बह्ममन को भोजन नही कारुगी, जो ब्रह्ममन आज तक किसी के घर भोजन नही किया हो मे उसी व्रह्ममन को कराऊंगी। तब राम जी चिंता मन पड़ गए ऐसा व्रह्ममन में कहाँ से लाऊगा । वे इस बात से भी चिंतीत थे, कि क्योकि सीता जी वचन दे चुके थे। श्री राम जी की तब नारद जी की याद आई क्यों कि तीनो लोक हाल खबर जितना नारद को पता होता है शायद ही किसी की पता हो , इस लिए श्री राम जी देवऋषी नारद जी की याद किये । याद करते ही नारद जी नारायण-नारायणा का जाप करते हुए उपस्थित हो गए। नारद जी हाथ जोड़ कर बोले हे प्रभु आपने इस सेवक को केसें याद किया । राम जी ने सिता जी को दिया हुआ वचन के बारे में बताये और बोले हे महाऋषी आप तो तीनो लोक में भ्रमण करते है , मुझे एक ऐसा व्रह्ममन ढुढ कर ला दिजीए जी आज तक किसी के घर भोजन ना किया हो ।                                                                                                                            नारद जी राम जी की आज्ञा पा कर अपने काम पर लग गये । उन्हे तीनो लोक में एक भी ऐसा व्रह्ममन नही मिला जो किसे क घर भोजन ना किया हो । वे आकाश मार्ग यहि सोचते हुए जा रहे थे कि, राम जी का आदेश का कैंसे पालन किया जाए। तभी अचानक उन्हें आकाश मार्ग से ही रावण की सोने की लंका दिखाई दिया उनकी बांछे खिल गई और वे लंका कि ओर प्रथान किये । नारद जी को पता था कि , यह रावण कर्म से राक्षस है पर जन्म से वह व्रह्ममन है। वे मुनी विश्वसर्वा और कैकसी का पुत्र एक प्रचंड बिद्वान और सर्व वेदों के ज्ञाता  है। वे  लंका नगरी के राजा भी थे। इस लिए किसी के यहाँ भोजन का सवाल नही उठाता । इस लिए नारद जी रावण के पास लंका नगरी चले गये। वहां जा का नारद जी रावण से पुरी वात  बताइ और अयोध्या जा कर भोजन करने की आग्रह किया। रावण भी उदारता दिखाते हुए नारद जी का आमंत्रण स्विकार कर लिया ।
                                                                                                                                                        रावण अयोध्या गये वहाँ सीता जी उनको छपनभोग का भोजन कराई। और बड़ी ही विनम्रता से पुछी महराज आपको दान में क्या दूँ, आप तो ब्राह्मण के साथ -साथ एक प्रतापी रजा भी है। तब रावण ने सीता जी से कहा में दान में कुछ नहीं लेना चाहता हु ,मेरी यही इच्छा है की जेसे में आज आपका आतिथ्य स्वीकार किया है इसी तरह आपको भी मेरा अतिथि बन कर मेरा आतिथ्य स्वीकार करना पड़ेगा मेरे लिए यही सबसे बड़ा उपहार होगा। सीता जी ने रावण को वचन दिया था, कि में एक दिन आपके नगर ने आऊंगा। 
इसी लिए सीता जी रावण की लंका में गुजरना पड़ा था।

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

भारत देश का सबसे बड़ा मंदिर कहा पर स्थित है ?

ये मंदिर है तमिलनाडु राज्य के तिरुचिरापल्ली के कावेरी नदी के किनारे रंगम द्वीप पर स्थित जिसका नाम है।

                      श्री रंगम मंदिर                


 ये देश का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। ये बिष्णु जी का मंदिर है। मानने वाले इस मंदिर को धरती का बैकुंठ मानते है। ये मंदिर 156 एकड़ में फेला  हुआ है। जिसका निर्माण चोल राज कुमार धर्म वर्मा ने करवाया था।


                     कैसे जाये


सबसे नजदीकी रेलवे जंक्शन - सबसे नजदीकी रेलवे जंक्शन तिरुचिरापल्ली रेलवे जंक्शन है, श्री रंगम मंदिर से इसकी दुरी 9 किलोमीटर है।

नजदीकी हवाई अड्डा - सबसे नजदीकी हवाई
 अड्डा भी तिरुचिरापल्ली ही है, जो श्री रंगम मंदिर से 15 किलोमीटर की दुरी पर है।

सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन - सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन श्री रंगम स्टेशन है जो मंदिर से 0.5 किलोमीटर पर स्थित है।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

क्यों नहीं हो सका शुभ महुर्त में श्री राम सीता जी का विवाह (पौराणिक कथा)

जब राम सीता जी का विवाह होना तय हो गया तब राजा दशरथ जी न अपने कुल पुरोहित मुनी बशिष्ठ जी और सभी ऋषि मुनियों के साथ विचार बिमर्श कीये और विवाह का शुभ महूर्त बताने की बिनती की ।क्योकि विवाह श्री राम सीता की होनी थी,यह कोई साधारण विवाह तो था नहीं। श्री राम जी बिष्णु जी और सीता जी लक्ष्मी जी का अवतार थे। ये बातें सभी साधु संतो को पता था। इस लिए सभी मुनि गण बड़ी ही सतर्कता के साथ विवाह का शुभ मुहर्त की तलाश में लग गए। बहुत माथा पच्ची के बाद सबने एक मुहर्त पर निकाली।उसके बाद राजा दशरथ को दूस महुर्त के बारे म बताया गया । मुनी बशिष्ठ बोले हे राजन हम लोगो की अथक प्रयास के बाद हम लोगों ने एस शुभ मुर्हत का चयन किया है, जिस महुर्त में विवाह होने पर पति-पत्नी का बिछडाव कभी नहीं होगा,और जिंदगी भर सुख़ शांति से रहेँगे। रजा दशरथ जी बहुत प्रशन हुए और उसी तिथी को ही विवाह करने का शुनिश्चित हुआ।


उधर देव गण वहुत दुखी हुए । देवता गण इस बात स दुखी थे, कि यदि राम सीता जी का विवाह इस महुर्त में हो गया तो वे एक दुसरे से बिछडेगे नही और यदि नही बिछडे तो रावण  नही मरेगा और रावण नही मरा तो देवताओं का दुख दुर नही होगा । दरसल श्री राम जी का मनुष्य जन्म लेनी का कारण ही रावण का बध कर सारे देवी देवताओं , ऋषी मुनीओं तथा सारे मनव जाती को रावण के अत्याचार से मुक्त करना था। तब सभी देवी देवता मिल कर मंत्रणा की गई की, श्री राम जी की शादी इस महुर्त में होने से किसे रोका जाय।                                               

 सबने मिल का एक योजना बनाई । प्राय सभी राजा महाराजाओं के यँहा शादी समारोह में मेहमानो के मनोरंजन के लिए नर्तक नर्तकियां बुलाई जाती थी। इसी बात का फायदा देवताओं ने उठाया वे अपने स्वग पूरी के सबसे बेहतरीन अप्सराओं को वँहा भेज दिया। उन अप्सराओ ने उस समारोह में ऐसा सम्मा बाँधा की सब लोग ये भूल गए की किस महुर्त में हमें विवाह करवाना है। महुर्त बीतने के बाद जल्दी-जल्दी विवाह शुरू हुआ। सभी देवी देवता बहुत प्रसन्न हुए उनका काम हो गया था। अब रावण को कोई नहीं बचा सकता ।
                                             

 श्री राम जी जिस कारन मनुष्य अवतार ले कर इस पृथ्वी पर आये है वो काम अब पूरा हो जायेगा। तब जाकर सभी देवी- देवताओं ने राहत की साँस ली।                          बोलीए श्री राम चंद्र की जय।

शनिवार, 9 मार्च 2019

प्रवचन का साइटिफेक्ट ( हास्य कथा )

एक समय की बात है। एक शहर में भागवत कथा हो रहा था। उसी शहर में एक परिवार रहता था। उस परिवार में पति पत्नी और दोनों बच्चे  थे। अब शहर में प्रवचन आया है तो दोनों को देखने की इच्छा हो रही थी। दोनों यदि एक साथ प्रवचन देखने जाते हैं तो फिर बच्चों का देखभाल कौन करेगा। उन्होंने फैसला किया कि दोनों अलग-अलग दिन में प्रवचन देखने जाएंगे। एक प्रवचन देखने जाएगा दूसरा बच्चा का देखभाल करेगा।  पहला दिन पति गया प्रवचन देखने। उस दिन रामायण की कथा हो रही थी। जिसमें राम जी के पिता दशरथ जी के शादी के प्रसंग  चल रहा था।    वे आदमी बहुत ध्यान से उस कथा को सुना। शाम को घर आया और खाना पीना खाकर सो गया।


दूसरे दिन पत्नी की बारी थी। वह भी सही समय पर सज  धज के प्रवचन देखने चली गई। उस दिन महाराज जी महाभारत के प्रसंग कह रहे थे। जिस में द्रौपदी स्वयंवर की कथा को स्वामी जी बहुत ही सुन्दर भाव से समझा रहे थै। उस सज्जन  ने भी उस कथा को को बडे शांत भाव से सुनी , ऊसे बहुत अच्छा लगा । कथा सुन के वह अपने घर आ गई । फिर से दोनौ की चिन्दगी की गाडी उसी तरह बेड़  आराम से चल रही थी।               


एक दिन किसी बात पर दोनो में झगडा हो गया । लम्बी वहस चली बातो की गोलियाँ दोनो और से दना- दन चल रही थी। तभी पति ने गुस्से से आग बगुला हो कर बोला मुझे ज्यादा गुस्सा मत दिलाओ नही तो अभी भी मेरे पास दो और ऑप्सन बाकी  है।तभी ऊनकी पत्नी तपाक से बोली मुझें भी ज्यादा परेशान मत करो नही तो मेरे पास अभी चार आप्शन वााकी है।
पति का चेहरा देखने लायख थी।

सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

तुम्हे मुबारक हो

काँटों से घिरे इस वन से,
अपना ना हो कोई उस आँगन से।
आये  थे  जिस  मेले  से    तुम , 
उस         मेले       से  ।
                        बिदाई तुम्हे मुबारक हो।                                                          
जिस रास्ते तुम गए  ,
उसी रस्ते सबको जाना है।
फर्क इतना तुम आज गए,
हमें बाद में जाना है।
जल्दी पहुँचो हे महान आत्मा,

                    परमात्मा तुम्हे मुबारक हो।

जो शारीर तुमने छोड़ा,
वह माटी था माटी में मिल गया।
उसमे जो आत्मा थी उसे प्रणाम,
तुम्हारे आत्मा का परमात्मा से ।

                      मिलन का तुम्हे मुबारक हो।












चमचागिरी

चमचागिरी का है जमाना,
इससे यारो तुम बच के रहना।
चमचागिरी करने वाले होते बेईमान,
अपने स्वार्थ के खातिर,
करते  सबकोे परेशान।
अगर न होते ये चमचे,
होते कितने अच्छे,
चेन से जीते सब,
रहता सबसे प्यार,
बड़े छोटे का यँहा,
होता न दिवार।
चमचों की इस दुनियां ने,
बहुतो को मारे,
उसमे से एक हम है 'बेचारे'।

बुधवार, 30 जनवरी 2019

सावन महीना

छाई घटा घनघोर नांचे वन में मोर ।
जल ही जल चहुँओरमेढ़क करता शोर ।
छम -छम -छम बुंदो का पड़ना।
सान -सन -सन हवां का बहना।
मस्त हो कर पेडों का झुमना।
लगता सबको बड़ा सुहाना ।
हल ले चले किसान भाई ।
और माँ बहने करने धान रुपाई।
किसानों के बेलो का हाँकना।
झुण्ड में धान रोपनीयोंका गाना।
फिजाओं में बहता यही तराना।
तब लगता आया सावन महीना।


गुरुवार, 24 जनवरी 2019

खंभा देख के चलो ( हास्य-व्यग्य)

एक समय की बात है , एक सज्जन की बबी का देहान्त हो गया।वक्त सुवह का था , गाँव वाले सब जमा हुए, चर्चा होने लगी आगे क्या होगा । सब को काम बाँट दिया गया,कोई बाजार चला गया अर्थी का सामान लेने,कोई बांस काट कर टटरी बनाने लगा । सब कोई इधर से उधर भाग दौड़ में लगा था। सब रिस्तेदार भर-भर गाड़ी आ रहे थे। रिस्तेदारो में भी जो कम उम्र के बच्चे(tinagger)  आये थे वे तो एक दम से Facebook WhatsApp लग गए मनो कोई समारोह में आये हो। कोई रो रहा था,कोई किसी को ढाढस बंधा रहा था। माहोल एकदम गमशीन  हो गया।                   

  एक रिस्तेदार ने बड़ी ही सालीनता के साथ उस सज्जन पूछा ,क्या भाई आपके रिस्तेदार सब आ गए, कोई बेटा-बेटी  तो आना वाकी नहीं रहा । उस सज्जन ने एक सरसरी निगाह चारो तरफ डाली और बोला सब कोई आ गया है अब कोई आने वाला नहीं है। तब उस व्यक्ती ने बड़ी ही जिम्बेदारी के साथ अर्थी निकालने की तैयारी शुरू कर दी। बाजार गए लडके भी आ गए थे,सब सामान आ चूका था। अब अंतिम यात्रा निकल चूकी थी।

क्यों की बहुत सारी तैयारी करना पड़ा इस लिए,घाट निकलते-निकलते शाम हो चुकी थी। सब लोग जल्दी-जल्दी घाट की ओर जा रहे थे।सब कोई राम नाम सत्य है,राम नाम सत्य कहे जा रहे थे।और जल्दी-जल्दी पांव बढ़ाये जा रहे थे। क्यों की कोई तो ठण्ड के  डर से हड़बड़ाकर चल रहा था, तो कोई शाम के समय समशान जाने में डर लग रहा था। सब लोग यही सोच रहा था,कि जितना जल्दी जायेगे उतना जल्दी जलाकर घर आपस आ जाएंगे। क्यों कि ठंडी का समय था। सब लोग राम नाम सत्य है का नारा लगते हुए, बड़ी जोश के साथ घाट की और बड़ रहे थे। शाम होने को थी, देहात का रास्ता था, रास्ते के बगल में एक खंभा था , अब थोडा अँधेरा घिर आया था। सब लोग जोश के साथ आगे बड़ रहे थे , अचानक एक जोर की आवाज आई ,जब सबने इस के बारे में जाना तो पता चला अर्थी एक खम्भे से टकरा गई थी। टक्कर इतनी जोरदार थी की मुर्दा उठ कर बैठ गई । सब ने जाकर देखा की मुर्दे का क्या हाल है यह तो आश्चर्य हो गया वह ओरत जी उठी। सब कोई हंसी - खुसी घर आगये खुछ ने कोसा भी " बेकार के इतना मेहनत करवाया " । पति का चेहरा देखने लयख था।
सब कोई अपना -अपना घर चला गया।

कुछ सालो बाद फिर से वह औरत मरी , फिर से उसी तरह से सब तैयारी शुरू हुई तैयारी होत- होते शाम हो गया । अंतिम यात्रा शुरू हुआ सब कोई बड़े जोश के साथ घाट की ओर बड़ रहे थे। सब कोई राम नाम सत्य है राम नाम सत्य की नारा लगा रहे थे।पर वह सज्जन जिसका बीबी मरी थी,वह अब आगे-आगे बड़ी जोश के के साथ चला जा रहा था।और सब लोग जितनी बार राम नाम सत्य है का नारा लगता वह जोर से बोलता।

               खंभा देख के चलो ।
               खंभा देख के चलो ।
               खंभा देख के चलो ।

             




सोमवार, 21 जनवरी 2019

अपना भी कोई घर होता (कविता)

सुदुर अंतरिक्ष में अपना भी कोई घर होता,
जब मन व्याकुल हो जाता इस हिंसक वातावरण स ,वही जाकर कुछ छन बिताता।
वहां ये सब तो ना देखन सुननेे को मिलता जैसे,
सरहद पर गोलियों की तड़तड़ाहट ,
कचरे की पेटी में कोई मासूम की सुगबुगाहट।
बीच चौराह पर तड़पता इंसान,
मोत बाटने वाला खुला घूमता शैतान।
इज्जत लूटा चुकी अबलाओं का ,
सुबक-सुबक कर रोना ।
लाखो मासूमो को खली पेट फुटपात पर सो जाना।
कम से कम ये तो न होता वँहा।
निश्छल , अहिंसक, प्रेममय शीतल बयार बहता हो जँहा।
डर, भूख और अपनो से बिछडने का गम ना होता हो जँहा ।
चाँद, शुक्र या हो मंगल इससे कुछ फर्क ना पड़ता ।
ऎसे ही शांत ,मंगलमय वातावरण में ,
काश अपना भी कोई घर होता, अपना भी कोई घर होता।

शनिवार, 19 जनवरी 2019

कितना अच्छा होता (कविता)

ना  किसी  से  डरते   हम,
न  किसी  को डराते  हम।
न मारने की भावना होती,
ना  मरने  का  डर  होता।।
                               तो कितना अच्छा होता।
आपस   में  होता   प्यार,
नफरत की ना होती दिवार।
ख़ुशी  का  आलम  होता,
कभी   कोई   ना    रोता।।
                                तो कितना अच्छा होता।
कश्मीर  की  बादीयों  में,
उन झीलो उन घाटियों में।
घूमता कोई निर्भय हो कर,
ना आतंकियों का डर होता।।
                                 तो कितना अच्छा होता।
भ्रटाचार  की ना  होती   मार,
जनता  के लिए बनती सरकार।
बुराइयो का नामोनिशां ना होता,
पुलिस जनता का रक्षक होता
                               तो कितना अच्छा होता।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ,
लड़ते है  क्यों  भाई-भाई ।
हे भगवन तूने ये जात क्यों बनाई,
जात एक इंसानियत का होता ।।
                                 तो कितना अच्छा होता।






शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

चौथा बन्दर

हम सब जानते है, हमारे राष्ट्रपिता महत्मा गाँधी ने हमें सही रास्ते पर चलने का सबसे आसान तरीका बतलाया था, और समझाया था ,अपने तिन बंदरो से। वे तीन बन्दर है।

पहला बन्दर
                  बुरा मत देखो ।

दूसरा बन्दर

                बुरा मत सुनो ।

तीसरा बंदर
                बुरा मत बोलो ।

अब आया चौथे बंदर की बारी बापू जी ने इस बन्दर के  बारेे में कुछ नहीं कहा था, लेकिन अभी इस समाज इस चोथे बन्दर की बहुत जरूरत है। यदि बापू जी जिन्दा होते तो वे तीन नहीं चार बन्दर की शिक्षा देते।

आज यदि बापू जी जिन्दा होते तो उन्हें  भी इस चोथे की जरूरत महसूस होती। तब इस  शिक्षा में तिन नहीं चार बन्दर होते। वो चौथा बन्दर है।

                   " बुरा मत सोचो "


आज के ज़माने में ऊपर के तीनो बंदरो से जादा इस चोथे बन्दर की जरुरत है। क्योकि सोच की ही उपज है ये बुरा देखना, बुरा सुनना और बुरा बोलना। यदि हमारे समाज में बुरा सोच का ही पतन हो जाये,तो यह तीनो अपने आप ख़त्म हो जाएगा।
यदि हम बापू जी के उपदेश स्वरूप इन तिन के जैसा एक और चौथा बन्दर बुरा मत सोचो को अपना ले तो,हमारे समाज के बहुत से बुराइयो का अंत हो जायेगा। और बापू जी का यह बुराई मुक्त परिकल्पना साकार हो जाएगी।

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

कलयुग में जीना

एक समय की बात है। एक साधु एक गाँव से गुजर रहे थे। उसने देखा उस गाँव ले लोगो का रो- रो बुरा हाल है, साधू जी को लगा की क्या हुआ है,थोडा देखा जाय। साधु जी उन लोगो के
  के पास गए,तो देखा किसी का बेटा मर गया था। इस लिए सब लोग इक्कट्ठा हुआ था। उस लड़के का माँ बाप दहाड़ मर कर रो रहा था,और गाँव वाले उन्हें ढाढ़स बंधा रहे थे। लोगो से पूछ-ताछ से पता चला की इस इलाके में एक साँप है जो आये दिन किसी ना किसी को काट लेता है इस बच्चे को उसी साँप के काट लिया है,जिस कारन इसकी मृत्यु हो गई ।साधु ने यह सुना तो उसे बहुत  बुरा लगा। वे इन सब गाँव वालो को उस सांप के आतंक से मुक्ति दिलाने की ठान ली ।

वे साधु बाबा एक जगह ध्यान में बैठ गए, और अपने तपोवल से उस साँप को अपने पास आने को मजबूर कर दिया। साँप फन उठाये आंधी की तरह फुफकारता हुआ साधु बाबा के पास आ गया। वँहा पहुचते ही साधू बाबा के तेज देख कर वह जहरीला सांप सांत हो गया। तब वह साँप विनय पूर्वक साधु से पूछा हे महराज आपने मुझे यँहा जबरजस्ती क्यों बुलाया है। साधु बाबा बड़े सांत भाव से बोले तुमने इन गाँव के लोगो को बहुत सताया है,आये दिन तुम्हारे कटाने से किसी न किसी की मोत हो जाती है,यह ठीक बात नहीं है।भगवान् ने तुम्हे बिष प्रदान किया है,इसका मतलब तुम किसी को डस लोगे! साँप को साधु के बात का ऐसा प्रभाव पड़ाव पड़ा की उसने ठान लिया की अब वह किसी को नहीं कटेगा। उसने सधु बाबा को कहा आप आप निश्चिन्त हो जाइये अब की को नहीं काटूँगा। यह सुन साधुजी अपने रस्ते दूसरे गाँव की तरफ चल गए।

कुछ समय बीत गया घूमते -फरते साधु जी फिर वही गाँव पहुँच गए । उसने सोंचा गांव वालो का हाल -चाल ले ले थोडा । वह जैसे गांव में गया उसे एक बच्चों का झुण्ड दिखा जो किसी के पीछे भाग रहा था और मस्ती से हल्ला कर रहा था।साधु बाबा सामने जा कर देखा तो उसे बड़ा आश्चय हुआ! वह तो वही साँप है जिसको उसने समझाया था। बच्चे उसके पीछे भाग रहे है, पूछ पकड़ कर घुमा रहे है,कोई पत्थल मार रहे और सब कोई यही चिल्ला रहा है,यह साँप नहीं काटता नहीं काटता है,बेचारा साँप अधमरा हो चूका था। साधू बाबा ने उसके सामने जाकर  पूछा तुम्हारा यह हाल कैसे हुआ । साँप ने बताया महात्मन् जब से आपके कहने पर मेंने किसी को काटना छोड़ दिया है , उस समय से इन बच्चों ने मेरा यह हल कर दिया। साधू बाबा एकदम बोल उठे अरे मुर्ख मेने तुम्हे सिर्फ काटने से मना कीया था,तुम फन उठा कर लोगो को डरा नहीं सकते थे। ये कलयुग है,इस युग में जीना है तो सामने वाले को यह महसूस दिलाओ की में काट सकता हु फन उठाओ फुफकार लगाओ तुम्हे काटने से मना किया था,य सब करने को नहीं मना किया था । सबके पास शक्ती होता इस शक्ति का उपयोग किसी को नुकसान पहुचने के लिए मत करो।परन्तु सामने वाले को ये देखना भी जरूरी है की में कमजोर  नहीं हु में चाहूँ तो तुम्हे नुकसान पहुँचा सकता हूँ। तब तुम इस युग में जिन्दा रह पाओगे।कमजोर दिखने वाले लोगो को यह जमाना जीने नहीं देती है।

रविवार, 13 जनवरी 2019

कोन सा दामाद अच्छा है (हास्य-व्यग्य)

एक गाँव म एक किसान रहता था । उस किसान का सिर्फ तीन बेटियाँ ही थी,कोई बेटा नहीं था।जब तीनो बेटियों की शादी हो गई तब उस किसान की पत्नी अपने पति से बोली।

हमारे तो कोई बेटा नहीं है जो बुढ़ापे में हमारी देख-भाल कर सके ,इस लिए हमें इन तीनो दामाद में से एक को घरजमाई रखना पड़ेगा । पति ने भी हाँ से हाँ मिलाया एक एक पत्नी भक्त पति की तरह ,क्यों कि घर में उनकी पत्नी की ही चलती थी।वे बेचारा करता भी क्या। अब यह सवाल उठ रहा था,कि तीनो दामाद में से कौन सबसे अच्छा है ।जिसे घर जमाई रखा जा सके।

पति ने सबसे अच्छा दामाद चुचने का जिम्मा अपने पत्नी पर छोड़ दिया।किसान की पत्नी ने अपने दामादों का परीक्षा लेनी की ठानी । देहात में घर था ,आगे घर और घर के पीछे तालाब । उस दिन बड़ा दमाद जी आया हुआ था। वह तालाब  में छलांग लगा दी व जोर-जोर से चिल्लाई बचाओ-बचाओ बड़े दामाद ने सुना, और आव देखा न ताव तालाब में  कूद कर सासु माँ को बच्चा लिया। इस पर सासु जी इतनी खुश हुई कि दामाद जी की एक चार चक्का गाड़ी(थोड़ी काम दाम वाली) खरीद का दामाद जी को भेट कर दी।दामाद ख़ुशी-खुशी अपने घर चले गए।

अब बारी मंझले दामाद का था, फिर से वही वाक्या दोहराया गया । मंझले दामाद ने भी जान पर खेल कर सासु माँ की जान बचाया।इस बार सासु जी ने उसे एक मोटर साईकिल भेट किया। वह भी खुशी-खुशी अपने घर चला गया।

अब बारी था छोटे दामाद की परीक्षा का,एक दिन जब छोटे दामाद भी घर आये थे और वह औरत तालाब में कूद गई, बचाओ-बचाओ की आवाज लगाने लगी संयोग से वह किसान भी उस दिन घर से बाहर गया था।और उसे तैरना भी नहीं आता था। जब छोटे दामाद को बचाओ -बचाओ की आवाज सुनाई दिया तो वह मन मार का बेठा रहा । उसने सोचा पहली बार बड़े साडू जी ने बचाया , उन्हें चार चक्का मिला मंझले साडू जी ने बचाया तो उनको दो चक्का मिला था। क्या पत्ता इस बार मुझे साईकिल ही ना थामा दे ,यह सोच वह अपनी जगह से हिला नहीं । उधर उनका सासु जी का राम नाम सत्य हो गया तालाब में डूबने से ।

थोड़ी देर बाद किसान घर आया देखा बीबी मरी हुई थी किर्या कर्म शुरू हुआ । सब श्राद्ध पूरा कर के जब छोटे दामाद घर  जा रहा था ,तब ससुर जी ने दामाद को एक मर्सिडीज कार भेट किया। दामाद एक दम भौचक्का रह गया! ससुर जी मुस्कुराये बोले जो ख़ुशी आपने मुझे दिया है उसके लिए तो यह भेट बहुत छोटी है।


शनिवार, 12 जनवरी 2019

सच्चा सेवक

एक राज्य में एक राज रहता था। वह राजा बहुत ही नेकदिल था, उस राजा के पास एक सेवक था,जो बच्च्पन से ही राजा के महल में ही रहता था, वहीँ पला बड़ा था क्यों की वह अनाथ था। वो राजा की सेवा में हमेशा तत्पर रहता था ,राजा भी उसे अपने पुत्र की भांति स्नेह करता था, वे कभी उसे अपने से अलग नहीं होने देते थे, वे राजा के साथ ही रहता था। उसमे एक खूबी थी क़ि एक काम खत्म होते ही दूसरे काम के लिए पूछने लगता की और काम है क्या। उसकी इसी सेवा भाव से राजा बहुत पसन्न होते और उसे बहुत स्नेह करते। राजा जहाँ भी जाते वे उसके साथ-साथ जाता ।
एक दिन की बात है, राजा शिकार करने जंगल करने जंगल में गए , सब दिनों की तरह सेवक भी उसके साथ गया, वे जंगल में बहुत दूर निकल गए ,राजा अपने सेनिको से बिछड़ गए,सिर्फ उसके साथ वो सेवक ही था राजा घोड़े पर वह सेवक पैदल चल रहा था, दोनों भूख-प्यास से बेहाल थे , न कोई घर न कोई गाँव दिख रहा था जिसे कुछ खाना पीना मिल सके घर में पुआ पकवान खाने वाले राजा को इतना भूख लगा था की  उन्हें कुछ भी मिले तो खा जाये,उन्हें उन्हें ऐसा लग रहा था मानो भूख से प्राण ही निकल जाये। चलते - चलते राजा को एक पेड़ में एक फल दिखाई दिया, ये फल एकदम अनजाने थे इस फल को वे दोनों में से कोई नहीं पहचानते थे, फल एक ही था राजा के हाथ में तलवार थी, उसने झट से हाथ बढ़ाकर फल को तोड़ लिया। और बड़े चाव से उसे खाने के लिए तलवार से टुकड़े करने लगे,तभी सेवक बोला प्रभु में भी भूखा हूँ,यह सुन राजा बोले, में अकेले कैसे खा सकता हूँ जितना भूखा में हूँ उतना भूखा तुम भी हो में तुम्हे कैसे भूल सकता हूँ। इतना कह राजा ने उसे फल का एक टुकड़ा उसे दे दिया ,देते ही वह उसे खा लिया और फिर से बोला प्रभु थोडा  और राजा ने फिर से फल का एक टूकड़ा उसे दिया वह उसे भी खा कर फिर से राजा से माँगना शुरू कर दिया ,ऐसे करते -करते राजा ने फल के एक छोटे से टुकड़े को छोड़ कर सब फल सेवक को खिला दिया ,तब रजा ने कहा अरे आज तुझे क्या हो गया है ,तू ही सब फल खा जायेगा तो में भी तो भूखा हूँ मुझे भी खाने दे ,इतना कह कर उसने बचे हुए फल के टुकड़े को मुंह में रखा के उसे तुरंत उगल दिया क्योकि वह फल इतना कड़वा था क़ि राजा उसे एक भी पल मुँह में नहीं रख पाये ,और उसने सेवक से कहा ये फल तो खाने योग्य है ही नहीं है और तुम इसे माँग-माँग कर खाते रहे इतना कड़वा फल मेने अपने जीवन में नहीं खाया। तब सेवक ने विनम्रता पूर्वक कहा प्रभु आप के हाथ ज़े मेने कितने बार छप्पन भोग खाये है एक बार में कड़वा फल नहीं खा सकता हूँ? और यदि में माँग का नहीं खता तो ये फल आप खा जाते जो मुझे पसंद नहीं था,इस लिए में इस फल को आपको नहीं खाने देने के लिए माँग कर खा लिया।सेवक के मुँह से ऎसे शब्द सुन कर राजा की आँखो  में पानी भर गया, उसने सेवक को गले से लगा कर बोले तुम्हारा सेवा धर्म से में आज बहुत खुश हुआ,मेने कभी बहुत अच्छे कर्म किये होगें इस लिए मुझे तुम्हारा जिस सेवक मिला।
अपने मालिक के प्रति निश्छल सेवा ही एक सेवक का  सबसे बड़ा धर्म होता है।

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

चरित्र और लीला

चरित्र अपनाना हो तो श्री राम का अपनाना चाहिए और लीला का आनन्द लेना है तो श्री कृष्ण जी के लीला का आनन्द लीजिए। पुराणों में कहा गया है जिसके घर राम जी की चरित्र को अपना लिया वो घर तर गया। श्री कृष्ण जी तो लीला दिखने आये थे उनके लीला का सिर्फ आनंद उठाना चाहिये,यदि उनकी लीला का नक़ल करोगे तो खुद लीला बन जाओगे ।