हम सब जानते है, हमारे राष्ट्रपिता महत्मा गाँधी ने हमें सही रास्ते पर चलने का सबसे आसान तरीका बतलाया था, और समझाया था ,अपने तिन बंदरो से। वे तीन बन्दर है।
पहला बन्दर
बुरा मत देखो ।
दूसरा बन्दर
बुरा मत सुनो ।
तीसरा बंदर
बुरा मत बोलो ।
अब आया चौथे बंदर की बारी बापू जी ने इस बन्दर के बारेे में कुछ नहीं कहा था, लेकिन अभी इस समाज इस चोथे बन्दर की बहुत जरूरत है। यदि बापू जी जिन्दा होते तो वे तीन नहीं चार बन्दर की शिक्षा देते।
आज यदि बापू जी जिन्दा होते तो उन्हें भी इस चोथे की जरूरत महसूस होती। तब इस शिक्षा में तिन नहीं चार बन्दर होते। वो चौथा बन्दर है।
आज के ज़माने में ऊपर के तीनो बंदरो से जादा इस चोथे बन्दर की जरुरत है। क्योकि सोच की ही उपज है ये बुरा देखना, बुरा सुनना और बुरा बोलना। यदि हमारे समाज में बुरा सोच का ही पतन हो जाये,तो यह तीनो अपने आप ख़त्म हो जाएगा।
यदि हम बापू जी के उपदेश स्वरूप इन तिन के जैसा एक और चौथा बन्दर बुरा मत सोचो को अपना ले तो,हमारे समाज के बहुत से बुराइयो का अंत हो जायेगा। और बापू जी का यह बुराई मुक्त परिकल्पना साकार हो जाएगी।
पहला बन्दर
बुरा मत देखो ।
दूसरा बन्दर
बुरा मत सुनो ।
तीसरा बंदर
बुरा मत बोलो ।
अब आया चौथे बंदर की बारी बापू जी ने इस बन्दर के बारेे में कुछ नहीं कहा था, लेकिन अभी इस समाज इस चोथे बन्दर की बहुत जरूरत है। यदि बापू जी जिन्दा होते तो वे तीन नहीं चार बन्दर की शिक्षा देते।
आज यदि बापू जी जिन्दा होते तो उन्हें भी इस चोथे की जरूरत महसूस होती। तब इस शिक्षा में तिन नहीं चार बन्दर होते। वो चौथा बन्दर है।
" बुरा मत सोचो "
आज के ज़माने में ऊपर के तीनो बंदरो से जादा इस चोथे बन्दर की जरुरत है। क्योकि सोच की ही उपज है ये बुरा देखना, बुरा सुनना और बुरा बोलना। यदि हमारे समाज में बुरा सोच का ही पतन हो जाये,तो यह तीनो अपने आप ख़त्म हो जाएगा।
यदि हम बापू जी के उपदेश स्वरूप इन तिन के जैसा एक और चौथा बन्दर बुरा मत सोचो को अपना ले तो,हमारे समाज के बहुत से बुराइयो का अंत हो जायेगा। और बापू जी का यह बुराई मुक्त परिकल्पना साकार हो जाएगी।
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