शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

क्यों नहीं हो सका शुभ महुर्त में श्री राम सीता जी का विवाह (पौराणिक कथा)

जब राम सीता जी का विवाह होना तय हो गया तब राजा दशरथ जी न अपने कुल पुरोहित मुनी बशिष्ठ जी और सभी ऋषि मुनियों के साथ विचार बिमर्श कीये और विवाह का शुभ महूर्त बताने की बिनती की ।क्योकि विवाह श्री राम सीता की होनी थी,यह कोई साधारण विवाह तो था नहीं। श्री राम जी बिष्णु जी और सीता जी लक्ष्मी जी का अवतार थे। ये बातें सभी साधु संतो को पता था। इस लिए सभी मुनि गण बड़ी ही सतर्कता के साथ विवाह का शुभ मुहर्त की तलाश में लग गए। बहुत माथा पच्ची के बाद सबने एक मुहर्त पर निकाली।उसके बाद राजा दशरथ को दूस महुर्त के बारे म बताया गया । मुनी बशिष्ठ बोले हे राजन हम लोगो की अथक प्रयास के बाद हम लोगों ने एस शुभ मुर्हत का चयन किया है, जिस महुर्त में विवाह होने पर पति-पत्नी का बिछडाव कभी नहीं होगा,और जिंदगी भर सुख़ शांति से रहेँगे। रजा दशरथ जी बहुत प्रशन हुए और उसी तिथी को ही विवाह करने का शुनिश्चित हुआ।


उधर देव गण वहुत दुखी हुए । देवता गण इस बात स दुखी थे, कि यदि राम सीता जी का विवाह इस महुर्त में हो गया तो वे एक दुसरे से बिछडेगे नही और यदि नही बिछडे तो रावण  नही मरेगा और रावण नही मरा तो देवताओं का दुख दुर नही होगा । दरसल श्री राम जी का मनुष्य जन्म लेनी का कारण ही रावण का बध कर सारे देवी देवताओं , ऋषी मुनीओं तथा सारे मनव जाती को रावण के अत्याचार से मुक्त करना था। तब सभी देवी देवता मिल कर मंत्रणा की गई की, श्री राम जी की शादी इस महुर्त में होने से किसे रोका जाय।                                               

 सबने मिल का एक योजना बनाई । प्राय सभी राजा महाराजाओं के यँहा शादी समारोह में मेहमानो के मनोरंजन के लिए नर्तक नर्तकियां बुलाई जाती थी। इसी बात का फायदा देवताओं ने उठाया वे अपने स्वग पूरी के सबसे बेहतरीन अप्सराओं को वँहा भेज दिया। उन अप्सराओ ने उस समारोह में ऐसा सम्मा बाँधा की सब लोग ये भूल गए की किस महुर्त में हमें विवाह करवाना है। महुर्त बीतने के बाद जल्दी-जल्दी विवाह शुरू हुआ। सभी देवी देवता बहुत प्रसन्न हुए उनका काम हो गया था। अब रावण को कोई नहीं बचा सकता ।
                                             

 श्री राम जी जिस कारन मनुष्य अवतार ले कर इस पृथ्वी पर आये है वो काम अब पूरा हो जायेगा। तब जाकर सभी देवी- देवताओं ने राहत की साँस ली।                          बोलीए श्री राम चंद्र की जय।

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