शनिवार, 19 जनवरी 2019

कितना अच्छा होता (कविता)

ना  किसी  से  डरते   हम,
न  किसी  को डराते  हम।
न मारने की भावना होती,
ना  मरने  का  डर  होता।।
                               तो कितना अच्छा होता।
आपस   में  होता   प्यार,
नफरत की ना होती दिवार।
ख़ुशी  का  आलम  होता,
कभी   कोई   ना    रोता।।
                                तो कितना अच्छा होता।
कश्मीर  की  बादीयों  में,
उन झीलो उन घाटियों में।
घूमता कोई निर्भय हो कर,
ना आतंकियों का डर होता।।
                                 तो कितना अच्छा होता।
भ्रटाचार  की ना  होती   मार,
जनता  के लिए बनती सरकार।
बुराइयो का नामोनिशां ना होता,
पुलिस जनता का रक्षक होता
                               तो कितना अच्छा होता।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ,
लड़ते है  क्यों  भाई-भाई ।
हे भगवन तूने ये जात क्यों बनाई,
जात एक इंसानियत का होता ।।
                                 तो कितना अच्छा होता।






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