एक राज्य में एक राज रहता था। वह राजा बहुत ही नेकदिल था, उस राजा के पास एक सेवक था,जो बच्च्पन से ही राजा के महल में ही रहता था, वहीँ पला बड़ा था क्यों की वह अनाथ था। वो राजा की सेवा में हमेशा तत्पर रहता था ,राजा भी उसे अपने पुत्र की भांति स्नेह करता था, वे कभी उसे अपने से अलग नहीं होने देते थे, वे राजा के साथ ही रहता था। उसमे एक खूबी थी क़ि एक काम खत्म होते ही दूसरे काम के लिए पूछने लगता की और काम है क्या। उसकी इसी सेवा भाव से राजा बहुत पसन्न होते और उसे बहुत स्नेह करते। राजा जहाँ भी जाते वे उसके साथ-साथ जाता ।
एक दिन की बात है, राजा शिकार करने जंगल करने जंगल में गए , सब दिनों की तरह सेवक भी उसके साथ गया, वे जंगल में बहुत दूर निकल गए ,राजा अपने सेनिको से बिछड़ गए,सिर्फ उसके साथ वो सेवक ही था राजा घोड़े पर वह सेवक पैदल चल रहा था, दोनों भूख-प्यास से बेहाल थे , न कोई घर न कोई गाँव दिख रहा था जिसे कुछ खाना पीना मिल सके घर में पुआ पकवान खाने वाले राजा को इतना भूख लगा था की उन्हें कुछ भी मिले तो खा जाये,उन्हें उन्हें ऐसा लग रहा था मानो भूख से प्राण ही निकल जाये। चलते - चलते राजा को एक पेड़ में एक फल दिखाई दिया, ये फल एकदम अनजाने थे इस फल को वे दोनों में से कोई नहीं पहचानते थे, फल एक ही था राजा के हाथ में तलवार थी, उसने झट से हाथ बढ़ाकर फल को तोड़ लिया। और बड़े चाव से उसे खाने के लिए तलवार से टुकड़े करने लगे,तभी सेवक बोला प्रभु में भी भूखा हूँ,यह सुन राजा बोले, में अकेले कैसे खा सकता हूँ जितना भूखा में हूँ उतना भूखा तुम भी हो में तुम्हे कैसे भूल सकता हूँ। इतना कह राजा ने उसे फल का एक टुकड़ा उसे दे दिया ,देते ही वह उसे खा लिया और फिर से बोला प्रभु थोडा और राजा ने फिर से फल का एक टूकड़ा उसे दिया वह उसे भी खा कर फिर से राजा से माँगना शुरू कर दिया ,ऐसे करते -करते राजा ने फल के एक छोटे से टुकड़े को छोड़ कर सब फल सेवक को खिला दिया ,तब रजा ने कहा अरे आज तुझे क्या हो गया है ,तू ही सब फल खा जायेगा तो में भी तो भूखा हूँ मुझे भी खाने दे ,इतना कह कर उसने बचे हुए फल के टुकड़े को मुंह में रखा के उसे तुरंत उगल दिया क्योकि वह फल इतना कड़वा था क़ि राजा उसे एक भी पल मुँह में नहीं रख पाये ,और उसने सेवक से कहा ये फल तो खाने योग्य है ही नहीं है और तुम इसे माँग-माँग कर खाते रहे इतना कड़वा फल मेने अपने जीवन में नहीं खाया। तब सेवक ने विनम्रता पूर्वक कहा प्रभु आप के हाथ ज़े मेने कितने बार छप्पन भोग खाये है एक बार में कड़वा फल नहीं खा सकता हूँ? और यदि में माँग का नहीं खता तो ये फल आप खा जाते जो मुझे पसंद नहीं था,इस लिए में इस फल को आपको नहीं खाने देने के लिए माँग कर खा लिया।सेवक के मुँह से ऎसे शब्द सुन कर राजा की आँखो में पानी भर गया, उसने सेवक को गले से लगा कर बोले तुम्हारा सेवा धर्म से में आज बहुत खुश हुआ,मेने कभी बहुत अच्छे कर्म किये होगें इस लिए मुझे तुम्हारा जिस सेवक मिला।
अपने मालिक के प्रति निश्छल सेवा ही एक सेवक का सबसे बड़ा धर्म होता है।