बुधवार, 30 जनवरी 2019

सावन महीना

छाई घटा घनघोर नांचे वन में मोर ।
जल ही जल चहुँओरमेढ़क करता शोर ।
छम -छम -छम बुंदो का पड़ना।
सान -सन -सन हवां का बहना।
मस्त हो कर पेडों का झुमना।
लगता सबको बड़ा सुहाना ।
हल ले चले किसान भाई ।
और माँ बहने करने धान रुपाई।
किसानों के बेलो का हाँकना।
झुण्ड में धान रोपनीयोंका गाना।
फिजाओं में बहता यही तराना।
तब लगता आया सावन महीना।


गुरुवार, 24 जनवरी 2019

खंभा देख के चलो ( हास्य-व्यग्य)

एक समय की बात है , एक सज्जन की बबी का देहान्त हो गया।वक्त सुवह का था , गाँव वाले सब जमा हुए, चर्चा होने लगी आगे क्या होगा । सब को काम बाँट दिया गया,कोई बाजार चला गया अर्थी का सामान लेने,कोई बांस काट कर टटरी बनाने लगा । सब कोई इधर से उधर भाग दौड़ में लगा था। सब रिस्तेदार भर-भर गाड़ी आ रहे थे। रिस्तेदारो में भी जो कम उम्र के बच्चे(tinagger)  आये थे वे तो एक दम से Facebook WhatsApp लग गए मनो कोई समारोह में आये हो। कोई रो रहा था,कोई किसी को ढाढस बंधा रहा था। माहोल एकदम गमशीन  हो गया।                   

  एक रिस्तेदार ने बड़ी ही सालीनता के साथ उस सज्जन पूछा ,क्या भाई आपके रिस्तेदार सब आ गए, कोई बेटा-बेटी  तो आना वाकी नहीं रहा । उस सज्जन ने एक सरसरी निगाह चारो तरफ डाली और बोला सब कोई आ गया है अब कोई आने वाला नहीं है। तब उस व्यक्ती ने बड़ी ही जिम्बेदारी के साथ अर्थी निकालने की तैयारी शुरू कर दी। बाजार गए लडके भी आ गए थे,सब सामान आ चूका था। अब अंतिम यात्रा निकल चूकी थी।

क्यों की बहुत सारी तैयारी करना पड़ा इस लिए,घाट निकलते-निकलते शाम हो चुकी थी। सब लोग जल्दी-जल्दी घाट की ओर जा रहे थे।सब कोई राम नाम सत्य है,राम नाम सत्य कहे जा रहे थे।और जल्दी-जल्दी पांव बढ़ाये जा रहे थे। क्यों की कोई तो ठण्ड के  डर से हड़बड़ाकर चल रहा था, तो कोई शाम के समय समशान जाने में डर लग रहा था। सब लोग यही सोच रहा था,कि जितना जल्दी जायेगे उतना जल्दी जलाकर घर आपस आ जाएंगे। क्यों कि ठंडी का समय था। सब लोग राम नाम सत्य है का नारा लगते हुए, बड़ी जोश के साथ घाट की और बड़ रहे थे। शाम होने को थी, देहात का रास्ता था, रास्ते के बगल में एक खंभा था , अब थोडा अँधेरा घिर आया था। सब लोग जोश के साथ आगे बड़ रहे थे , अचानक एक जोर की आवाज आई ,जब सबने इस के बारे में जाना तो पता चला अर्थी एक खम्भे से टकरा गई थी। टक्कर इतनी जोरदार थी की मुर्दा उठ कर बैठ गई । सब ने जाकर देखा की मुर्दे का क्या हाल है यह तो आश्चर्य हो गया वह ओरत जी उठी। सब कोई हंसी - खुसी घर आगये खुछ ने कोसा भी " बेकार के इतना मेहनत करवाया " । पति का चेहरा देखने लयख था।
सब कोई अपना -अपना घर चला गया।

कुछ सालो बाद फिर से वह औरत मरी , फिर से उसी तरह से सब तैयारी शुरू हुई तैयारी होत- होते शाम हो गया । अंतिम यात्रा शुरू हुआ सब कोई बड़े जोश के साथ घाट की ओर बड़ रहे थे। सब कोई राम नाम सत्य है राम नाम सत्य की नारा लगा रहे थे।पर वह सज्जन जिसका बीबी मरी थी,वह अब आगे-आगे बड़ी जोश के के साथ चला जा रहा था।और सब लोग जितनी बार राम नाम सत्य है का नारा लगता वह जोर से बोलता।

               खंभा देख के चलो ।
               खंभा देख के चलो ।
               खंभा देख के चलो ।

             




सोमवार, 21 जनवरी 2019

अपना भी कोई घर होता (कविता)

सुदुर अंतरिक्ष में अपना भी कोई घर होता,
जब मन व्याकुल हो जाता इस हिंसक वातावरण स ,वही जाकर कुछ छन बिताता।
वहां ये सब तो ना देखन सुननेे को मिलता जैसे,
सरहद पर गोलियों की तड़तड़ाहट ,
कचरे की पेटी में कोई मासूम की सुगबुगाहट।
बीच चौराह पर तड़पता इंसान,
मोत बाटने वाला खुला घूमता शैतान।
इज्जत लूटा चुकी अबलाओं का ,
सुबक-सुबक कर रोना ।
लाखो मासूमो को खली पेट फुटपात पर सो जाना।
कम से कम ये तो न होता वँहा।
निश्छल , अहिंसक, प्रेममय शीतल बयार बहता हो जँहा।
डर, भूख और अपनो से बिछडने का गम ना होता हो जँहा ।
चाँद, शुक्र या हो मंगल इससे कुछ फर्क ना पड़ता ।
ऎसे ही शांत ,मंगलमय वातावरण में ,
काश अपना भी कोई घर होता, अपना भी कोई घर होता।

शनिवार, 19 जनवरी 2019

कितना अच्छा होता (कविता)

ना  किसी  से  डरते   हम,
न  किसी  को डराते  हम।
न मारने की भावना होती,
ना  मरने  का  डर  होता।।
                               तो कितना अच्छा होता।
आपस   में  होता   प्यार,
नफरत की ना होती दिवार।
ख़ुशी  का  आलम  होता,
कभी   कोई   ना    रोता।।
                                तो कितना अच्छा होता।
कश्मीर  की  बादीयों  में,
उन झीलो उन घाटियों में।
घूमता कोई निर्भय हो कर,
ना आतंकियों का डर होता।।
                                 तो कितना अच्छा होता।
भ्रटाचार  की ना  होती   मार,
जनता  के लिए बनती सरकार।
बुराइयो का नामोनिशां ना होता,
पुलिस जनता का रक्षक होता
                               तो कितना अच्छा होता।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ,
लड़ते है  क्यों  भाई-भाई ।
हे भगवन तूने ये जात क्यों बनाई,
जात एक इंसानियत का होता ।।
                                 तो कितना अच्छा होता।






शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

चौथा बन्दर

हम सब जानते है, हमारे राष्ट्रपिता महत्मा गाँधी ने हमें सही रास्ते पर चलने का सबसे आसान तरीका बतलाया था, और समझाया था ,अपने तिन बंदरो से। वे तीन बन्दर है।

पहला बन्दर
                  बुरा मत देखो ।

दूसरा बन्दर

                बुरा मत सुनो ।

तीसरा बंदर
                बुरा मत बोलो ।

अब आया चौथे बंदर की बारी बापू जी ने इस बन्दर के  बारेे में कुछ नहीं कहा था, लेकिन अभी इस समाज इस चोथे बन्दर की बहुत जरूरत है। यदि बापू जी जिन्दा होते तो वे तीन नहीं चार बन्दर की शिक्षा देते।

आज यदि बापू जी जिन्दा होते तो उन्हें  भी इस चोथे की जरूरत महसूस होती। तब इस  शिक्षा में तिन नहीं चार बन्दर होते। वो चौथा बन्दर है।

                   " बुरा मत सोचो "


आज के ज़माने में ऊपर के तीनो बंदरो से जादा इस चोथे बन्दर की जरुरत है। क्योकि सोच की ही उपज है ये बुरा देखना, बुरा सुनना और बुरा बोलना। यदि हमारे समाज में बुरा सोच का ही पतन हो जाये,तो यह तीनो अपने आप ख़त्म हो जाएगा।
यदि हम बापू जी के उपदेश स्वरूप इन तिन के जैसा एक और चौथा बन्दर बुरा मत सोचो को अपना ले तो,हमारे समाज के बहुत से बुराइयो का अंत हो जायेगा। और बापू जी का यह बुराई मुक्त परिकल्पना साकार हो जाएगी।

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

कलयुग में जीना

एक समय की बात है। एक साधु एक गाँव से गुजर रहे थे। उसने देखा उस गाँव ले लोगो का रो- रो बुरा हाल है, साधू जी को लगा की क्या हुआ है,थोडा देखा जाय। साधु जी उन लोगो के
  के पास गए,तो देखा किसी का बेटा मर गया था। इस लिए सब लोग इक्कट्ठा हुआ था। उस लड़के का माँ बाप दहाड़ मर कर रो रहा था,और गाँव वाले उन्हें ढाढ़स बंधा रहे थे। लोगो से पूछ-ताछ से पता चला की इस इलाके में एक साँप है जो आये दिन किसी ना किसी को काट लेता है इस बच्चे को उसी साँप के काट लिया है,जिस कारन इसकी मृत्यु हो गई ।साधु ने यह सुना तो उसे बहुत  बुरा लगा। वे इन सब गाँव वालो को उस सांप के आतंक से मुक्ति दिलाने की ठान ली ।

वे साधु बाबा एक जगह ध्यान में बैठ गए, और अपने तपोवल से उस साँप को अपने पास आने को मजबूर कर दिया। साँप फन उठाये आंधी की तरह फुफकारता हुआ साधु बाबा के पास आ गया। वँहा पहुचते ही साधू बाबा के तेज देख कर वह जहरीला सांप सांत हो गया। तब वह साँप विनय पूर्वक साधु से पूछा हे महराज आपने मुझे यँहा जबरजस्ती क्यों बुलाया है। साधु बाबा बड़े सांत भाव से बोले तुमने इन गाँव के लोगो को बहुत सताया है,आये दिन तुम्हारे कटाने से किसी न किसी की मोत हो जाती है,यह ठीक बात नहीं है।भगवान् ने तुम्हे बिष प्रदान किया है,इसका मतलब तुम किसी को डस लोगे! साँप को साधु के बात का ऐसा प्रभाव पड़ाव पड़ा की उसने ठान लिया की अब वह किसी को नहीं कटेगा। उसने सधु बाबा को कहा आप आप निश्चिन्त हो जाइये अब की को नहीं काटूँगा। यह सुन साधुजी अपने रस्ते दूसरे गाँव की तरफ चल गए।

कुछ समय बीत गया घूमते -फरते साधु जी फिर वही गाँव पहुँच गए । उसने सोंचा गांव वालो का हाल -चाल ले ले थोडा । वह जैसे गांव में गया उसे एक बच्चों का झुण्ड दिखा जो किसी के पीछे भाग रहा था और मस्ती से हल्ला कर रहा था।साधु बाबा सामने जा कर देखा तो उसे बड़ा आश्चय हुआ! वह तो वही साँप है जिसको उसने समझाया था। बच्चे उसके पीछे भाग रहे है, पूछ पकड़ कर घुमा रहे है,कोई पत्थल मार रहे और सब कोई यही चिल्ला रहा है,यह साँप नहीं काटता नहीं काटता है,बेचारा साँप अधमरा हो चूका था। साधू बाबा ने उसके सामने जाकर  पूछा तुम्हारा यह हाल कैसे हुआ । साँप ने बताया महात्मन् जब से आपके कहने पर मेंने किसी को काटना छोड़ दिया है , उस समय से इन बच्चों ने मेरा यह हल कर दिया। साधू बाबा एकदम बोल उठे अरे मुर्ख मेने तुम्हे सिर्फ काटने से मना कीया था,तुम फन उठा कर लोगो को डरा नहीं सकते थे। ये कलयुग है,इस युग में जीना है तो सामने वाले को यह महसूस दिलाओ की में काट सकता हु फन उठाओ फुफकार लगाओ तुम्हे काटने से मना किया था,य सब करने को नहीं मना किया था । सबके पास शक्ती होता इस शक्ति का उपयोग किसी को नुकसान पहुचने के लिए मत करो।परन्तु सामने वाले को ये देखना भी जरूरी है की में कमजोर  नहीं हु में चाहूँ तो तुम्हे नुकसान पहुँचा सकता हूँ। तब तुम इस युग में जिन्दा रह पाओगे।कमजोर दिखने वाले लोगो को यह जमाना जीने नहीं देती है।

रविवार, 13 जनवरी 2019

कोन सा दामाद अच्छा है (हास्य-व्यग्य)

एक गाँव म एक किसान रहता था । उस किसान का सिर्फ तीन बेटियाँ ही थी,कोई बेटा नहीं था।जब तीनो बेटियों की शादी हो गई तब उस किसान की पत्नी अपने पति से बोली।

हमारे तो कोई बेटा नहीं है जो बुढ़ापे में हमारी देख-भाल कर सके ,इस लिए हमें इन तीनो दामाद में से एक को घरजमाई रखना पड़ेगा । पति ने भी हाँ से हाँ मिलाया एक एक पत्नी भक्त पति की तरह ,क्यों कि घर में उनकी पत्नी की ही चलती थी।वे बेचारा करता भी क्या। अब यह सवाल उठ रहा था,कि तीनो दामाद में से कौन सबसे अच्छा है ।जिसे घर जमाई रखा जा सके।

पति ने सबसे अच्छा दामाद चुचने का जिम्मा अपने पत्नी पर छोड़ दिया।किसान की पत्नी ने अपने दामादों का परीक्षा लेनी की ठानी । देहात में घर था ,आगे घर और घर के पीछे तालाब । उस दिन बड़ा दमाद जी आया हुआ था। वह तालाब  में छलांग लगा दी व जोर-जोर से चिल्लाई बचाओ-बचाओ बड़े दामाद ने सुना, और आव देखा न ताव तालाब में  कूद कर सासु माँ को बच्चा लिया। इस पर सासु जी इतनी खुश हुई कि दामाद जी की एक चार चक्का गाड़ी(थोड़ी काम दाम वाली) खरीद का दामाद जी को भेट कर दी।दामाद ख़ुशी-खुशी अपने घर चले गए।

अब बारी मंझले दामाद का था, फिर से वही वाक्या दोहराया गया । मंझले दामाद ने भी जान पर खेल कर सासु माँ की जान बचाया।इस बार सासु जी ने उसे एक मोटर साईकिल भेट किया। वह भी खुशी-खुशी अपने घर चला गया।

अब बारी था छोटे दामाद की परीक्षा का,एक दिन जब छोटे दामाद भी घर आये थे और वह औरत तालाब में कूद गई, बचाओ-बचाओ की आवाज लगाने लगी संयोग से वह किसान भी उस दिन घर से बाहर गया था।और उसे तैरना भी नहीं आता था। जब छोटे दामाद को बचाओ -बचाओ की आवाज सुनाई दिया तो वह मन मार का बेठा रहा । उसने सोचा पहली बार बड़े साडू जी ने बचाया , उन्हें चार चक्का मिला मंझले साडू जी ने बचाया तो उनको दो चक्का मिला था। क्या पत्ता इस बार मुझे साईकिल ही ना थामा दे ,यह सोच वह अपनी जगह से हिला नहीं । उधर उनका सासु जी का राम नाम सत्य हो गया तालाब में डूबने से ।

थोड़ी देर बाद किसान घर आया देखा बीबी मरी हुई थी किर्या कर्म शुरू हुआ । सब श्राद्ध पूरा कर के जब छोटे दामाद घर  जा रहा था ,तब ससुर जी ने दामाद को एक मर्सिडीज कार भेट किया। दामाद एक दम भौचक्का रह गया! ससुर जी मुस्कुराये बोले जो ख़ुशी आपने मुझे दिया है उसके लिए तो यह भेट बहुत छोटी है।


शनिवार, 12 जनवरी 2019

सच्चा सेवक

एक राज्य में एक राज रहता था। वह राजा बहुत ही नेकदिल था, उस राजा के पास एक सेवक था,जो बच्च्पन से ही राजा के महल में ही रहता था, वहीँ पला बड़ा था क्यों की वह अनाथ था। वो राजा की सेवा में हमेशा तत्पर रहता था ,राजा भी उसे अपने पुत्र की भांति स्नेह करता था, वे कभी उसे अपने से अलग नहीं होने देते थे, वे राजा के साथ ही रहता था। उसमे एक खूबी थी क़ि एक काम खत्म होते ही दूसरे काम के लिए पूछने लगता की और काम है क्या। उसकी इसी सेवा भाव से राजा बहुत पसन्न होते और उसे बहुत स्नेह करते। राजा जहाँ भी जाते वे उसके साथ-साथ जाता ।
एक दिन की बात है, राजा शिकार करने जंगल करने जंगल में गए , सब दिनों की तरह सेवक भी उसके साथ गया, वे जंगल में बहुत दूर निकल गए ,राजा अपने सेनिको से बिछड़ गए,सिर्फ उसके साथ वो सेवक ही था राजा घोड़े पर वह सेवक पैदल चल रहा था, दोनों भूख-प्यास से बेहाल थे , न कोई घर न कोई गाँव दिख रहा था जिसे कुछ खाना पीना मिल सके घर में पुआ पकवान खाने वाले राजा को इतना भूख लगा था की  उन्हें कुछ भी मिले तो खा जाये,उन्हें उन्हें ऐसा लग रहा था मानो भूख से प्राण ही निकल जाये। चलते - चलते राजा को एक पेड़ में एक फल दिखाई दिया, ये फल एकदम अनजाने थे इस फल को वे दोनों में से कोई नहीं पहचानते थे, फल एक ही था राजा के हाथ में तलवार थी, उसने झट से हाथ बढ़ाकर फल को तोड़ लिया। और बड़े चाव से उसे खाने के लिए तलवार से टुकड़े करने लगे,तभी सेवक बोला प्रभु में भी भूखा हूँ,यह सुन राजा बोले, में अकेले कैसे खा सकता हूँ जितना भूखा में हूँ उतना भूखा तुम भी हो में तुम्हे कैसे भूल सकता हूँ। इतना कह राजा ने उसे फल का एक टुकड़ा उसे दे दिया ,देते ही वह उसे खा लिया और फिर से बोला प्रभु थोडा  और राजा ने फिर से फल का एक टूकड़ा उसे दिया वह उसे भी खा कर फिर से राजा से माँगना शुरू कर दिया ,ऐसे करते -करते राजा ने फल के एक छोटे से टुकड़े को छोड़ कर सब फल सेवक को खिला दिया ,तब रजा ने कहा अरे आज तुझे क्या हो गया है ,तू ही सब फल खा जायेगा तो में भी तो भूखा हूँ मुझे भी खाने दे ,इतना कह कर उसने बचे हुए फल के टुकड़े को मुंह में रखा के उसे तुरंत उगल दिया क्योकि वह फल इतना कड़वा था क़ि राजा उसे एक भी पल मुँह में नहीं रख पाये ,और उसने सेवक से कहा ये फल तो खाने योग्य है ही नहीं है और तुम इसे माँग-माँग कर खाते रहे इतना कड़वा फल मेने अपने जीवन में नहीं खाया। तब सेवक ने विनम्रता पूर्वक कहा प्रभु आप के हाथ ज़े मेने कितने बार छप्पन भोग खाये है एक बार में कड़वा फल नहीं खा सकता हूँ? और यदि में माँग का नहीं खता तो ये फल आप खा जाते जो मुझे पसंद नहीं था,इस लिए में इस फल को आपको नहीं खाने देने के लिए माँग कर खा लिया।सेवक के मुँह से ऎसे शब्द सुन कर राजा की आँखो  में पानी भर गया, उसने सेवक को गले से लगा कर बोले तुम्हारा सेवा धर्म से में आज बहुत खुश हुआ,मेने कभी बहुत अच्छे कर्म किये होगें इस लिए मुझे तुम्हारा जिस सेवक मिला।
अपने मालिक के प्रति निश्छल सेवा ही एक सेवक का  सबसे बड़ा धर्म होता है।

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

चरित्र और लीला

चरित्र अपनाना हो तो श्री राम का अपनाना चाहिए और लीला का आनन्द लेना है तो श्री कृष्ण जी के लीला का आनन्द लीजिए। पुराणों में कहा गया है जिसके घर राम जी की चरित्र को अपना लिया वो घर तर गया। श्री कृष्ण जी तो लीला दिखने आये थे उनके लीला का सिर्फ आनंद उठाना चाहिये,यदि उनकी लीला का नक़ल करोगे तो खुद लीला बन जाओगे ।