शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

कालिया घाट या कालिया दह - वृंदावन Kaliya Ghat or Kaliya Dah, Vrindavan

कालिया घाट या कालिया  दह यह स्थान वृंन्दावन में  यमुना नदी के किनारे पे स्थित है।  इस स्थान पर श्री कृष्ण भगववान ने आपने बचपन के  बहुत  दिन गुजरे थे । एक समय की बात है ,श्री कृष्ण अपने ग्वाल शाखाओ सुदामा , श्रीदामा इत्यादि  के साथ यमुना नदी  के किनारे गेंद खेल रहे थे।  सब मित्र बड़े मजे से गेंद खेल रहे  थे, ये खेल गेंद से बारी- बरी से एक दूसरे पर मार  कर खेल रहे थे , जब गेंद मारने  की बारी  कृष्ण की आई तो उन्होने गेंद  इतनी जोर से उछाला की गेंद सीधे यमुना की पानी में वंही  गिरा जिसे सब कालिया दह के नाम से जानते थे।  उस दह का पानी कालिया नाग की विष से इतना जहरीला हो गया था,की मनुष्य तो क्या कोई जानवर भी इस पानी को पिए तो मर जाता था। ब्रज की कितने ही गाँये यह पानी पी कर मर गई थी।

Kaliya ghat or kaliya dah,  Vrindavan.
Kaliya ghat Vrindavan 

चूंकी गेंद सुदामा का था , वह जिद करने लगा की मुझे  वही गेंद ला कर दो। सब के बहुत समझाने के बाद भी सुदामा नहीं माना तब , श्री कृष्ण एक कदम के बृक्ष (पेड़ ) पर चढ़ कर यमुना के कालिया  दह में छलांग लगा दिए। कृष्ण को कूदते ही सब ग्वाल बाल नन्द बाबा को बुलाने चले  गए। इधर कृष्ण भगववान यमुना के  गहरे  पानी में वे  वंहा पहुंच गए जंहा कालिया नाग सोये हुआ थे और उनकी दोनो  पत्निया पहरा  दे रही थी। कृष्ण को  वंहा पहुंचते ही कालिया नाग जाग गए और  कृष्ण को मारने  के लिए अपनी फन से जहर की बौछार कर दिए , पर उस जहर से  कृष्ण भगवन को कुछ नहीं हुआ , दोनों में बहुत देर तक युध्य हुआ, और युध्य में हारने  के बाद  कालिया नाग अपनी दोनों पत्निया सहित अपने प्राणो की रक्षा की  लिए भगवान की स्तुति करने लगे।
Neolamarckia cadamba tree of Kalia Ghat
Neolamarckia cadamba tree of Kalia Ghat

तब कृष्ण भगवान एक सर्त  पर कालिया को क्षमा किए की वे इस जगह को छोड़ कर समुद्र में चले जाय।  तब कालिया नाग हाथ  जोड़ कर बिनती करने  लगा हे प्रभु यदि में यंहा से चला गया तो गरुड़ मुझे खा जायेगा। तब भगवन उसे निर्भय का वरदान दिये दिये और कहे तुम्हारे शीष पर मेरी पद चिन्ह देख गरुड़ जी तुम्हे कुछ नही करेगे , यह कह कृष्ण भगवान् कालिया के फ़न पर सवार हो गए और मुरली बजा कर निर्त्य ( नाचने )  करते -करते यमुना से बहार निकले। इसी तरह कृष्ण भगवान् ने कालिया नाग के आतंक से पुरे ब्रज वासीयों को बचा लिया ।

Kaliya ghat, Vrindavan, video

रविवार, 24 जनवरी 2021

ब्रह्मांड घाट (Brahmand ghat) महावन गोकुल - जहां लगता है मिट्टी का भोग।

मथुरा के नन्द भवन से कुछ दुरी पर महावन स्थान पर यमुना जी का यह किनारा जिसे सब ब्रह्माण्ड घाट की नाम से जानते है। कथा के अनुसार कृष्ण भगवन अपने बाल  अवस्था में यमुना जी की किनारे बाल शाखाओ के साथ   खेल रहे थे , खेलते - खेलते उन्होंने मिट्टि खा लिया। यह बात पानी भरने आई कुछ गोपिओ ने यशोदा माँ को बता दिया की यशोदा (तीरो लाला ) तेरा बेटा मिट्टि खा रहा है।

Brahmand Bihari Mandir, Brahmand ghat gokul mathura.
Brahmand Bihari Mandir, Brahmand ghat gokul mathura.


यह सुन यशोदा माँ को बहुत गुस्सा आया और  यमुना किनारे जाकर जंहा कान्हा मिट्टि खा रहा था , बोली क्या रे कान्हा मिट्टि खा रहा है क्या , कान्हा ने बड़े भोलेपन से सर हिला कर ना में जबाब  दिया। तब जाकर  माता ने साथ खेल रहे ग्वाल बालको से पूछा तो सबने कहा की कान्हा के मट्टी खाई है।  तब माँ गुस्से में कान्हा से कहा लाला  (बेटा ) मुँह खोल देखे तूने कितनी मिट्टि खाई। 

https://youtu.be/3m-NsTAPe84 

 अब जा कर कह्नैया को लगा अब तो चोरी पकड़ी गई अब तो मुँह दिखाना ही  पड़ेगा। कृष्ण भगवन ने मुँह  खोल कर माता को  दिखाई. जैसे ही माता कृष्ण के मुहँ मे झांकी तो मिट्टी के जगह पूरा ब्रह्माण्ड दिखाई देने लग अरबो- खरबो तारे नक्षर दिखाई पडने लगे यह देख माता बेहोश हो गई। तब जाकर कृष्ण ने अपना मुंह बंद कर माता को होस मे लाया । इसी लिए यमुना के इस घाट को ब्रह्माण्ड घाट कहा जाता है , जहाँ अभी भी मिट्टी का भोग ( प्रसाद) लगता है।



मंगलवार, 15 सितंबर 2020

अर्जुन के दश नाम

1. धन्नजय  2.  विजय  3. श्वेतवाहन  4. फाल्गुनी  5. कृटी  6. विभत्सु   7. सव्यसाची  8. अर्जुन  9.  जिशनु  10. कृष्ण ।

रविवार, 13 सितंबर 2020

महाभारत की रोचक कहानियां - अर्जुन के 10 नाम

महाभारत काव्य मैं अर्जुन  मुख्य पात्रो में से एक है। जिसे हम कुंती पुत्र अर्जुन, कृष्ण जी के सखा अर्जुन इत्यादि बहुत सारे नामों से जानते हैं । इतने नाम के बावजूद महाभारत के अनुसार अर्जुन के 10 नाम है जिन्हें वे अपने मुख से कहे हैं । जब पांचो पांडव दुर्योधन से जुए मैं हार कर शर्त अनुसार 12 वर्ष वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास के लिए बन को चले गए । तब 12 वर्ष बन में रहने के बाद जब 1 वर्ष अज्ञात वर्ष की बारी आई, तो वे सब मिलकर विराट राज के यहां भैंस बदलकर समय बिता रहे थे । यह सब अपने आप को महाराज युधिष्ठिर का सेवक होने का परिचय दिया , युधिष्ठिर ने अपने आप को कंक  बना लिए और उन्होंने कहा  मैं महाराज युधिष्ठिर को पाशा खेल कर मन बहलाया करता था । भीम ने अपने आप को महाराज युधिष्ठिर के रसोईया वल्लभ के रूप में अपना परिचय दिया । अर्जुन ने अपना परिचय बृहन्नाला के रूप में दीया वे एक संगीत मास्टर के रूप में अपना परिचय दिया और राजकन्या उतरा को नृत्य संगीत का ज्ञान देने लगे । नकुल और सहदेव एक गौशाला और दूसरे ने घुड़साल संभाल लिया । और द्रोपदी सरेन्द्री के रूप में महारानी के सेवा में समय बिताने लगी । इसी तरह से पांचों भाई और द्रोपदी विराट राज के यहां लगभग 1 वर्ष बीता दिये । उसी समय दुर्योधन ने पूरी कौरव सेना के साथ विराट राजा के गोधन ( गायो ) को हर ले गया । जब ये खबर विराटराज के पास गया तो वे अपने पुत्र राजकुमार उत्तर को अपनी गायो को छुडाने के लिए भेजा। उस समय कंक बने युदिष्ठर ने महराज से कह कर बृहन्नाला वने अर्जुन को उत्तर का सारथी वना कर भेज दिया क्योंकि उत्तर को यह पता नहीं था कि वे किन निक महारभी से भिडने जा रहा है, जिस सेना मे गंगा पुत्र भिष्म , आचार्य द्रोण , अंग राज कर्ण , कृपाचार्य , अशस्थामा , दुशासन और खुद दुर्योधन हो उस सेना को उत्तर जैसा एक बालक क्या बिगाड़ेगा । पहले तो उत्तर बड़ी-बड़ी बाते करते हुए जा रहा था , पर जब कौरवो का विशाल सेना को देखा तो वह भागने लगा तब अर्जुन उसे पकड कर समझाया कि ऐसे रण से भागना क्षेत्रीय को  शोभा नही देता , तो  उसने कहा अभी तुम मर्यादा की बात मत करो प्राण ही नही रहेगी तो मर्यादा क्या करेगी इस लिए में युद्ध नही करुगा । तब अर्जुन रथ पर सवार होकर उसे सारथी वना कर युद्ध करने के लिए चल दिये । युद्ध से पहले वे अपने अत्र ( धनुष वाण ) जहां  बांध कर रखें थे वहां गये और , उत्तर की सभी अत्र को  पेड से उतारने को  कहा उसके बाद वे अपना धनुष वाण अठा लिए। ये सब  शत्र देख उतर अर्जुन से पुझते है यह अत्र किसके है , तो बृहन्नाला बने अर्जुन ने कहा ये अत्र पाडण्वो की है और मे कुंती पुत्र अर्जुन हूं। और  उसने अपने और अपने भाइयो का द्रोपदी सहीत परिचय दिया । ये सब सुन उत्तर को  विश्वास नही हुआ और वे अर्जुन से बोले यदि आप अर्जुन है तो कृपया अपना दश नाम बतायें क्योकि मेने सुना है कि अर्जुन का दश नाम है। तब कुंती पुत्र अर्जुन ने अपने श्री मुख से अपने दश नाम बताये । 1. धन्नजय 2.  विजय  3. श्वेतवाहन  4. फाल्गुनी 5. कृटी 6. विभत्सु  7. सव्यसाची 8. अर्जुन 9. जिशनु 10. कृष्ण ।

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

हर एक मुस्कान कुछ कहता है

एक दिन में ऑफिस से घर जाने के समय सब्जी बजार में सब्जी लेने रुका । सब्जी वाले के यहां में कुछ सब्जियां ली और अपने मोटर साइकिल के पास आ गया । सब्जी के झोले को मोटर साइकिल मे टांग कर गाड़ी को स्टाट करने ही वाला था कि एक 7 - 8 का बच्चा मेरे सामने अपना पुराना सा कटोरा फैला कर पैसे मांगने लगा । इतने छोटे बच्चे को भीख मांगते देख मुझे बहुत खराब लगता है , और उसके माँ बाप पर गुस्सा भी आता है , इतने छोटे बच्चे से भीख क्यों मंगाता है। क्या मां बाप अपने बुरी लत की पुरा करने के लिए अपने बच्चो से ये काम करता है या ये अपनी मजबूरी के कारण ये काम करता है। ये सब जानने का किसी को समय नही है अभी । वो तो हर आने जाने वालो के सामने अपना कटोरा फैला देता है। कोई कुछ पैसे दे देता कोई नही देता ।

सीता जी को रामजी से मुंह दिखाई में क्या मिला था ?

उस दिन पहले तो मैंने कहा कि छुट्टा नही है , क्योंकि में जल्दी किसी सवस्थ आदमी की भिख नही देता क्योंकि मेरा मानना है कि भिख देने से ही भिखारी बढ़ते है और जिसका शरीर ठीक-ठाक है वे भी काम करने के बजाए भिख मांगते है । पर बच्चे की मासूमियत देख मेने पुछ लिया पैसे का क्या करेंगे। उस बच्चे ने मुस्कराते हुए जबाब दिया अंडा चोप ( उबले हुए अंडे को बेसन मे लपेट कर छान हुआ ) खाना है। में अपना पर्स निकाल कर देखा छुट्टे के नाम पर पांच का एक सिक्का था, मेने उसे कहा मे यंही हूँ जाओ अंडा चोप ले लो वह सामने लगे नास्ते के ठेले के पास जाकर पैसे देकर अंडा चोप मांगा होगा क्योकि थोडा दुर हेने के कारण मे उसकी आवज सुन नही पाया ।

रामायण की रोचक कहानियां- राम बड़ा या राम का नाम ?

 लगता है पैसे कम पड़ गए तब उसने और पैसे दुकानदार को दिया और दुकानदार उसे एक अंडा चोप एक कागज के प्लेट मे दे दिया वह वड़ी खुशी से पकड़ा और खाने लगा । और जाते-जाते मेरी तरफ देख कर मुस्कुराया उस मुस्कुराहट का में कायल हो गया । मानो वो कह रहा हो देखो तुम्हारे पैसे से मेने वही समान खरीदा जो कहा था । उसके बाद मे वाइक को स्टाट किया और अपने घर की और चल दिया पर उस बच्चे की वह प्यारी सी "मुस्कान" बहुत देर तक मेरे जेहन मे रहा ।


रविवार, 2 अगस्त 2020

2020 का एक शुभ कार्य- श्री राम मंदिर का शिलान्यास

सन - 2020 मे सब बुरा  ही हो रहा है ,साल शुरू होने के पहले ही कोरोना का आगमन हो गया अब सारा विश्व इसी मे उलझा हुआ है, डर के मारे लोग समचार देखना , पढना छोड दिया है। हमे तो लगता है , कोरोना का खबर से लोग इतना डर गए है , यदि उसे कोरोना हो गया तो ठीक होने से पहले डिप्रेशन से कुछ ना हो जाए । इस डरावना माहोल से एक खबर मन  को  शांत करने बाली आई की, 5 अगस्त को अयोध्या मे " श्री राम मंदिर का शिलान्यास " हो रहा है। इस खबर से  मानो कोरेना के डर से मन मे जमी धुल हट गई हो, खबर का उजाला भारत ही नही सारे संसार  को प्रकाशयामान कर रहा हो । 

Jay sri ram

अन्तर मन मे एक स्फुर्ती का अनुभव हो रहा है । मन मे तसस्ली तो हुआ कि अब श्री राम जी का मंदिर बन जाएगा। श्री राम जी का पंडालवास लगता है, अब खत्म होने की है । जब-जब कोई राम भक्त अपने आराध्य की इस रुप मे पंडाल मे पाते तो मानो उसके दिल मे एक ठीस सी उठती कि , है प्रभु आप अपने पिता के अज्ञा से चौदह बर्ष का वनवास तो काट लिये , पर कब  आपका ये पंडालवास कब खत्म होगा । लगता है अब प्रभु अपने  महल मे लोटने वाले है , अब लगता है उनका कलियुग का वनवास खत्म होने को है। 

जय श्री राम , जय हिन्द

शनिवार, 1 अगस्त 2020

अनसुनी बाते - दुखिया महादेव मंदिर , करमदाहा घाट , जामताड़ा , झारखण्ड (Visiting story)

दुखिया महादेव मंदिर धनबाद जामताड़ा के बॉर्डर पर बराकर नदी के तट पर प्रखंड नारायणपुर जिला जामताड़ा झारखंड भारत मैं स्थित है । यह मंदिर इस इलाके का बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है । इस मंदिर की खूबसूरती और यहां के स्वच्छ वातावरण बरबस भक्त जनों एवं पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है , और सबसे बड़ी बात है, की झारखंड के दूसरी सबसे बड़ी नदी बराकर के किनारे इस मंदिर के होने से इसकी सुंदरता में चार चांद लग जाती है । यहां पर बराकर नदी की स्वच्छ निर्मल जल कल - कल करती बहती प्रकृति के मनोरम दृष्य किसी का भी मन मोह लेने के लिए कम नहीं है। इस नदी का जल इतना साफ होता है कि जल के अंदर चट्टाने, कंकड़ पत्थर, और जलचर सब साफ-साफ दिखाई पड़ते है।

Jharkhand-tourism



जो भी यहाँ आते है, इसी घाट में नहाकर दुखिया महादेव जी की पूजा अर्चना करते है। जिस जगह पर यह मंदिर है इस जगह को मरमदाहा घाट के नाम से जाना जाता था, उस समय यहां पुल नही था अब पुल बन गया है इस लिए अब इसे करमदाहा पुल या करमदाहा वृज के नाम से भी जाता है। इस मंदिर में ऐसे तो सालों भर पूजा पाठ और शादी ब्याह चलते रहता है, पर मकर सक्रांति के अवसर पर यहां 15 दिन का एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, यह मेला यहां के स्थानीय निवासियों के लिए एक उत्सव से कम नहीं । इस मेले में बहुत दूर-दूर से लोग मेला देखने, सामान खरीदने, और सामान बेचने के लिए आते हैं । यहां की लोहे की समान काफी लोकप्रिय है ।

Jharkhand-tourism



 यहां मकर सक्रांति के अवसर पर श्रद्धालु संक्रांति स्नान के लिए भारी मात्रा में आते हैं, और मैंने कुछ लोगों को धान की बालियां पुआल सहित मंदिर में चढ़ाते हुए देखा , पूछने पर पता चला की यह प्रथा बहुत दिनों से चली आ रही है , अगल बगल के लोग अच्छी फसल होने के खुशी में दुखिया महादेव जी को धान की बालियां चलाते हैं , उनका मानना है कि अगले साल भी धान की फसल अच्छी होगी । यहां नव वर्ष में पिकनिक मनाने वालों का भी भीड़ दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है, स्थानीय लोगों के साथ साथ अगल बगल के जिला से पर्यटक पिकनिक मनाने के लिए आते हैं और शहर से दूर प्रकृति के मनोरम दृश्य का आनंद उठाते हैं ।


कैसे जाएं - 


यह जगह गोविंदपुर साहिबगंज हाईवे पर बराकर नदी के किनारे पर स्थित हैं । 

धनबाद से इसकी दूरी 42 किलोमीटर जाने का समय आपको 54 मिनट लग जाएगा ।

यदि आप जामताड़ा तरफ से यहाँ जाना चाहते हैं तो इसकी दूरी 33 किलोमीटर और सफर 45 मिनट का होगा ।

और यदि आप गिरिडीह से यहाँ जाना चाहे तो दूरी 45 किलोमीटर और सफर का समय 1:15 ।


आज के लिए इतना ही

हर हर महादेव , वंदे मातरम ।