1. धन्नजय 2. विजय 3. श्वेतवाहन 4. फाल्गुनी 5. कृटी 6. विभत्सु 7. सव्यसाची 8. अर्जुन 9. जिशनु 10. कृष्ण ।
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मंगलवार, 15 सितंबर 2020
रविवार, 13 सितंबर 2020
महाभारत की रोचक कहानियां - अर्जुन के 10 नाम
महाभारत काव्य मैं अर्जुन मुख्य पात्रो में से एक है। जिसे हम कुंती पुत्र अर्जुन, कृष्ण जी के सखा अर्जुन इत्यादि बहुत सारे नामों से जानते हैं । इतने नाम के बावजूद महाभारत के अनुसार अर्जुन के 10 नाम है जिन्हें वे अपने मुख से कहे हैं । जब पांचो पांडव दुर्योधन से जुए मैं हार कर शर्त अनुसार 12 वर्ष वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास के लिए बन को चले गए । तब 12 वर्ष बन में रहने के बाद जब 1 वर्ष अज्ञात वर्ष की बारी आई, तो वे सब मिलकर विराट राज के यहां भैंस बदलकर समय बिता रहे थे । यह सब अपने आप को महाराज युधिष्ठिर का सेवक होने का परिचय दिया , युधिष्ठिर ने अपने आप को कंक बना लिए और उन्होंने कहा मैं महाराज युधिष्ठिर को पाशा खेल कर मन बहलाया करता था । भीम ने अपने आप को महाराज युधिष्ठिर के रसोईया वल्लभ के रूप में अपना परिचय दिया । अर्जुन ने अपना परिचय बृहन्नाला के रूप में दीया वे एक संगीत मास्टर के रूप में अपना परिचय दिया और राजकन्या उतरा को नृत्य संगीत का ज्ञान देने लगे । नकुल और सहदेव एक गौशाला और दूसरे ने घुड़साल संभाल लिया । और द्रोपदी सरेन्द्री के रूप में महारानी के सेवा में समय बिताने लगी । इसी तरह से पांचों भाई और द्रोपदी विराट राज के यहां लगभग 1 वर्ष बीता दिये । उसी समय दुर्योधन ने पूरी कौरव सेना के साथ विराट राजा के गोधन ( गायो ) को हर ले गया । जब ये खबर विराटराज के पास गया तो वे अपने पुत्र राजकुमार उत्तर को अपनी गायो को छुडाने के लिए भेजा। उस समय कंक बने युदिष्ठर ने महराज से कह कर बृहन्नाला वने अर्जुन को उत्तर का सारथी वना कर भेज दिया क्योंकि उत्तर को यह पता नहीं था कि वे किन निक महारभी से भिडने जा रहा है, जिस सेना मे गंगा पुत्र भिष्म , आचार्य द्रोण , अंग राज कर्ण , कृपाचार्य , अशस्थामा , दुशासन और खुद दुर्योधन हो उस सेना को उत्तर जैसा एक बालक क्या बिगाड़ेगा । पहले तो उत्तर बड़ी-बड़ी बाते करते हुए जा रहा था , पर जब कौरवो का विशाल सेना को देखा तो वह भागने लगा तब अर्जुन उसे पकड कर समझाया कि ऐसे रण से भागना क्षेत्रीय को शोभा नही देता , तो उसने कहा अभी तुम मर्यादा की बात मत करो प्राण ही नही रहेगी तो मर्यादा क्या करेगी इस लिए में युद्ध नही करुगा । तब अर्जुन रथ पर सवार होकर उसे सारथी वना कर युद्ध करने के लिए चल दिये । युद्ध से पहले वे अपने अत्र ( धनुष वाण ) जहां बांध कर रखें थे वहां गये और , उत्तर की सभी अत्र को पेड से उतारने को कहा उसके बाद वे अपना धनुष वाण अठा लिए। ये सब शत्र देख उतर अर्जुन से पुझते है यह अत्र किसके है , तो बृहन्नाला बने अर्जुन ने कहा ये अत्र पाडण्वो की है और मे कुंती पुत्र अर्जुन हूं। और उसने अपने और अपने भाइयो का द्रोपदी सहीत परिचय दिया । ये सब सुन उत्तर को विश्वास नही हुआ और वे अर्जुन से बोले यदि आप अर्जुन है तो कृपया अपना दश नाम बतायें क्योकि मेने सुना है कि अर्जुन का दश नाम है। तब कुंती पुत्र अर्जुन ने अपने श्री मुख से अपने दश नाम बताये । 1. धन्नजय 2. विजय 3. श्वेतवाहन 4. फाल्गुनी 5. कृटी 6. विभत्सु 7. सव्यसाची 8. अर्जुन 9. जिशनु 10. कृष्ण ।
मंगलवार, 8 सितंबर 2020
हर एक मुस्कान कुछ कहता है
सीता जी को रामजी से मुंह दिखाई में क्या मिला था ?
उस दिन पहले तो मैंने कहा कि छुट्टा नही है , क्योंकि में जल्दी किसी सवस्थ आदमी की भिख नही देता क्योंकि मेरा मानना है कि भिख देने से ही भिखारी बढ़ते है और जिसका शरीर ठीक-ठाक है वे भी काम करने के बजाए भिख मांगते है । पर बच्चे की मासूमियत देख मेने पुछ लिया पैसे का क्या करेंगे। उस बच्चे ने मुस्कराते हुए जबाब दिया अंडा चोप ( उबले हुए अंडे को बेसन मे लपेट कर छान हुआ ) खाना है। में अपना पर्स निकाल कर देखा छुट्टे के नाम पर पांच का एक सिक्का था, मेने उसे कहा मे यंही हूँ जाओ अंडा चोप ले लो वह सामने लगे नास्ते के ठेले के पास जाकर पैसे देकर अंडा चोप मांगा होगा क्योकि थोडा दुर हेने के कारण मे उसकी आवज सुन नही पाया ।
रामायण की रोचक कहानियां- राम बड़ा या राम का नाम ?
रविवार, 2 अगस्त 2020
2020 का एक शुभ कार्य- श्री राम मंदिर का शिलान्यास
सन - 2020 मे सब बुरा ही हो रहा है ,साल शुरू होने के पहले ही कोरोना का आगमन हो गया अब सारा विश्व इसी मे उलझा हुआ है, डर के मारे लोग समचार देखना , पढना छोड दिया है। हमे तो लगता है , कोरोना का खबर से लोग इतना डर गए है , यदि उसे कोरोना हो गया तो ठीक होने से पहले डिप्रेशन से कुछ ना हो जाए । इस डरावना माहोल से एक खबर मन को शांत करने बाली आई की, 5 अगस्त को अयोध्या मे " श्री राम मंदिर का शिलान्यास " हो रहा है। इस खबर से मानो कोरेना के डर से मन मे जमी धुल हट गई हो, खबर का उजाला भारत ही नही सारे संसार को प्रकाशयामान कर रहा हो ।
शनिवार, 1 अगस्त 2020
अनसुनी बाते - दुखिया महादेव मंदिर , करमदाहा घाट , जामताड़ा , झारखण्ड (Visiting story)
दुखिया महादेव मंदिर धनबाद जामताड़ा के बॉर्डर पर बराकर नदी के तट पर प्रखंड नारायणपुर जिला जामताड़ा झारखंड भारत मैं स्थित है । यह मंदिर इस इलाके का बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है । इस मंदिर की खूबसूरती और यहां के स्वच्छ वातावरण बरबस भक्त जनों एवं पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है , और सबसे बड़ी बात है, की झारखंड के दूसरी सबसे बड़ी नदी बराकर के किनारे इस मंदिर के होने से इसकी सुंदरता में चार चांद लग जाती है । यहां पर बराकर नदी की स्वच्छ निर्मल जल कल - कल करती बहती प्रकृति के मनोरम दृष्य किसी का भी मन मोह लेने के लिए कम नहीं है। इस नदी का जल इतना साफ होता है कि जल के अंदर चट्टाने, कंकड़ पत्थर, और जलचर सब साफ-साफ दिखाई पड़ते है।
जो भी यहाँ आते है, इसी घाट में नहाकर दुखिया महादेव जी की पूजा अर्चना करते है। जिस जगह पर यह मंदिर है इस जगह को मरमदाहा घाट के नाम से जाना जाता था, उस समय यहां पुल नही था अब पुल बन गया है इस लिए अब इसे करमदाहा पुल या करमदाहा वृज के नाम से भी जाता है। इस मंदिर में ऐसे तो सालों भर पूजा पाठ और शादी ब्याह चलते रहता है, पर मकर सक्रांति के अवसर पर यहां 15 दिन का एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, यह मेला यहां के स्थानीय निवासियों के लिए एक उत्सव से कम नहीं । इस मेले में बहुत दूर-दूर से लोग मेला देखने, सामान खरीदने, और सामान बेचने के लिए आते हैं । यहां की लोहे की समान काफी लोकप्रिय है ।
यहां मकर सक्रांति के अवसर पर श्रद्धालु संक्रांति स्नान के लिए भारी मात्रा में आते हैं, और मैंने कुछ लोगों को धान की बालियां पुआल सहित मंदिर में चढ़ाते हुए देखा , पूछने पर पता चला की यह प्रथा बहुत दिनों से चली आ रही है , अगल बगल के लोग अच्छी फसल होने के खुशी में दुखिया महादेव जी को धान की बालियां चलाते हैं , उनका मानना है कि अगले साल भी धान की फसल अच्छी होगी । यहां नव वर्ष में पिकनिक मनाने वालों का भी भीड़ दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है, स्थानीय लोगों के साथ साथ अगल बगल के जिला से पर्यटक पिकनिक मनाने के लिए आते हैं और शहर से दूर प्रकृति के मनोरम दृश्य का आनंद उठाते हैं ।
कैसे जाएं -
यह जगह गोविंदपुर साहिबगंज हाईवे पर बराकर नदी के किनारे पर स्थित हैं ।
धनबाद से इसकी दूरी 42 किलोमीटर जाने का समय आपको 54 मिनट लग जाएगा ।
यदि आप जामताड़ा तरफ से यहाँ जाना चाहते हैं तो इसकी दूरी 33 किलोमीटर और सफर 45 मिनट का होगा ।
और यदि आप गिरिडीह से यहाँ जाना चाहे तो दूरी 45 किलोमीटर और सफर का समय 1:15 ।
आज के लिए इतना ही
हर हर महादेव , वंदे मातरम ।
रविवार, 21 जून 2020
रामायण की रोचक कहानियां - माता शबरी और श्री राम का मिलाप (पौराणिक कथा)
जी हां मैं बात कर रहा हूं माता शबरी की । जाति के भीलनी और संत मतंग ऋषि के शिष्या जिनका नाम शबरी थी । मतंग ऋषि तो बहुत पहले देह त्याग कर स्वर्ग धाम चले गए , पर इस शिष्या को कह गए थे की तुम इसी आश्रम में रहो एक दिन भगवान विष्णु के अवतार , दशरथ नंदन , पुरुषोत्तम श्री राम अपनी भार्या जनक नंदिनी सीता जी के वियोग में वन - वन भटकते - भटकते वानर राज सुग्रीव के खोज में इस आश्रम में पधारेंगे और तुम्हें दर्शन देंगे । तुम उसका अतिथि सत्कार कर सुग्रीव जी का पता बताकर उनसे भक्ति और मोक्ष का उपदेश पाकर तुम मोक्ष को प्राप्त कर जाओगी ।अपने गुरु के आदेश अनुसार शबरी श्री राम की रोज रास्ता निहारा करती की कब मेरे श्री राम आएंगे ।
आश्रम के तरफ आने वाले रास्ते पर रोज झाड़ू लगाकर उसमें बागों से सुंदर - सुंदर फूल लाकर बिछाती पता नहीं प्रभु किस दिन आ जाएंगे । जब शाम तक प्रभु नहीं आते तो, अगले दिन मुरझाए हुए फूलों को हटाकर फिर से फूल बिछा देती । वह रोज मीठे मीठे बैर थाली सजा कर रखती , वह हर बैर चखकर देखती जो बैर खट्टा लगे उसे फेंक देते और जो बैर मीठा लगता उसे थाली में सजाकर रखती । पता नहीं प्रभु कब आ जाए और उन्हें भूख लगी हो, यह सोच सबरी रोज बैर से थाली सजा कर रखती । श्रीराम से भेंट करने की वह वह इतनी उत्सुक थी की यही सब दिनचर्या बन गया था , लोग उसे पगली समझता था । जिस रास्ते को वह साफ-सुथरा करके फूल बिछा कर रखती थी , यदि उस फूलों पर कोई गुजरने का कोशिश करें तो वह विनय पूर्वक उसे मना कर देती । लोग पगली समझ कर इसका कहां मान लेते हैं उस फूलों पर पैर नहीं लगाते ।
एक दिन सबरी की भाग्य का उदय हुआ , और सीता जी के वियोग मैं श्री राम अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ महाराज सुग्रीव का पता पूछते - पूछते उसके आश्रम में उपस्थित हो गए । जैसे ही श्री राम चंद्र ने अपना परिचय दिए , शबरी जी की नैनों से भक्ति की अश्रु धारा बह निकली । राम जी से भेंट होने से सबरी को ऐसा लगा मानो एक भिखारी को मानिक मिल गया हो , मानो बरसो से प्यासी रेगिस्तान में मूसलाधार बारिश हो रही हो , एक भूखे व्यक्ति को छत्पन भोग मिल गया हो , यही अनुभूति शबरी को हम प्रभु के दर्शन से हुआ । प्रभु को आसन पर बैठा कर वही चख कर रखे हुए मीठे बैर खाने को देते हैं, प्रभु उस बैर को बहुत ही प्रेम से खा रहे हैं । भोजन के उपरांत श्री राम शबरी के गुरु मतंग ऋषि के तपोस्थली को देखने की इच्छा जताते है ।
तब शबरी प्रभु राम को अपने गुरु के उस दिव्य तपोस्थली का दर्शन कराते हैं , जहां उनके गुरु ध्यान लगाते थे । उस तपोस्थली में एक दिव्य तेज प्रकाशमान हो रहा था । शबरी जी श्री राम को बताती है, की इसी स्थल पर मेरे गुरुदेव तपस्या किया करते थे उनके तपस्या के प्रभाव से इस आश्रम के अगल-बगल मनुष्य तो क्या पशु पक्षी भी हिंसक स्वभाव त्याग देते हैं, एक ही घाट पर बाघ, बकरी, हिरण पानी पीते हैं , एक साथ विचरण करते है। उसके बाद शबरी जी अपने गुरु के आदेशानुसार श्री राम जी के मुख से मोक्ष के उपदेश पाकर स्वर्ग धाम को चले गए ।
जय श्री राम, जय हिंद ।
गुरुवार, 18 जून 2020
सोना पहाड़ी मंदिर झारखण्ड ( visiting story )
यहाँ की हरयाली एवं स्वछ वातावरण के कारण सेनालियो को बरबस अपनी और आर्कसित कर रहा है। पूरे इलाके का मनोरम दृष्य का आनंद लिया जा सकता है। द्वार सैनी माता यहां पिंडी रूप में विराजमान हैं, यहां द्वार सैनी माता के साथ-साथ बजरंगबली और मां काली के भी मंदिर स्थित है ।
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द्वारसेनी माता एवं द्वारसेनी बबा मंदिर सोना पहाड़ी झारखंड |
यहां मन्नत मांगने वाले भक्तो की लगभग सालों भर तांता लगा रहता है । बहुत सारे भक्तजनो के आने से यहाँ पर्यटन की आपार सम्भावना बन गई है , और इस अति पिछड़े इलाके में इस मंदिर की वजह से पूरे इलाके के लोगो मे उमीद की एक किरण जाग गई है। क्योंकि उसे अपने ही गॉव में रोजगार का अवसर मिल गया है।
यहां अगल-बगल के राज्यों से भी बहुत सारे भक्त आते है। यहां से मन्नत मांगने वालो की मन्नत पूरी होने पर यहाँ बकरे की बली दी जाती है । बली की गई बकरे का मांस प्रसाद स्वरूप उसी गांव में बना कर खाया जाता है , इसके लिए वहाँ पर कमरा, हॉल , वर्तन किराये पर मिल जाता है। प्राय- प्राय सभी खाने-पीने वस्तुओ की दुकान यहाँ है , जिसमे आप समान खरीद कर खाना बना कर खा सकते है। यहां ये भी मान्यता है कि वहाँ का प्रसाद रूपी खाना आप गांव से बाहर नही ले जा सकते । एक तो आप खाने खाकर खत्म कर दिजिए या किसी मे बाट दिजिए ।
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बजरंगबली मंदिर सोना पहाड़ी झारखण्ड |
सोना पहाड़ी केसे जाए
सोना पहाड़ी जाने के लिए तीन मुख्य शहर से दूरी ,धनबाद से सोना पहाड़ी की दूर 61 किलोमीटर सफर 1:30 घंटे का , हजारीबाग से 66 किलोमीटर सफर 1:30 घंटे का ,और गिरीडीह से 52 किलोमीटर सफर 1 घंटे का है। ऐसे नेशनल हाइवे 2 के वगल में होने के कारण आप कहीं से और कभी भी वहां जा सकते है।
राम राम , जय हिन्द ।
बुधवार, 25 मार्च 2020
बिना गांठ की रस्सी (Knotted cord)
महात्मा बुध जी अपने हाथों में एक रस्सी लेकर आए, वे अपने आसन पर बैठते ही सबको रस्सी को दिखाते हुए उसमें गांठ बांधने लगे, गांठ बांधने के बाद अपने शिष्यों से बोले क्या वह वही रस्सी है जो मैंने थोड़ी देर पहले तुम्हें दिखाया था ? एक शिष्य हाथ जोड़कर कहा भगवान रस्सी तो वही है पर उसमें गांठ पड़ जाने के कारण वह अपना मूल रूप खो चुका यदि इसमें से गांठ खोल दिया जाए तो वाह अपना मूल रूप में आ जाएगा ।
बुद्ध जी ने रस्सी का दोनों सिरा को पकड़ कर जोर से खींचने लगे गांठ खोलने के बजाय और भी कस के, इस पर एक शिष्य ने कहा हे भगवान ऐसे यदि इसे ऐसे खींचा जाएगा तो गांठ खोलने के बजाय और भी कस जाएगा और बाद में इसे बोलने में बहुत ही परिश्रम करना पड़ेगा । रस्सी के गांठ को खोलने के लिए गांठ को ध्यानपूर्वक देखना होगा की गांठ किस तरह का है कौन सा भाग किधर से खींचने से खुल सकता है ।
तब जाकर गांठ खुलेगी और रस्सी अपने मूल स्वरूप मैं आ जाएगी । उस शिष्य की बातें सुनकर महात्मा बुध बहुत प्रसन्ना हुए, और सभी शिष्यों को संबोधित करके बोलने लगे । हमारी जीवन एक रस्सी की तरह और इसमें लगी गांठ हमारी उसके मुश्किलें है यदि हम बिना सोचे समझे रस्सी के गांठ यानी अपने जीवन की मुश्किलों के साथ रस्सी की तरह व्यवहार करेंगे तो मुश्किलें कम होने के वजाए और भी ज्यादा बढ़ सकती है ।
यदि हम शांत चित्त से सोच समझकर उस मुश्किलों का सामना करेंगे तो जिंदगी की सारे मुश्किलों को खत्म कर बिना गांठ की रस्सी की तरह अपने जीवन को आसानी से जी पाएंग । इससे यही सीख मिलती है कि जी अपने मुश्किलों से जी चुराने की बजाय, जोर आजमाइश करने के बजाए शांत भाव से सोच समझकर उसका हल निकालने की कोशिश किया जाए तो मानव जीवन जीना बहुत आसान हो जाएगा ।
मंगलवार, 24 मार्च 2020
कुछ साथ जाता है ? मरने के बाद ! Does something go together? After death !
वह माया मोह के चक्कर में पढ़कर कोई भी हालात में पैसा कमाना चाहता है, जिसे वाह अपने और अपने बीवी बच्चों के लिए सारी उपभोग की वस्तु घर, मोटर, चल अचल संपत्ति बनाता रहता है । उसे लगता है यह सब मेरा है । उसे यह पता नहीं होता कि सांस रुकते ही मुझे चला या दफना दिया जाएगा । धन दौलत दूर की बात है , मृतक के शरीर मैं कफन को छोड़कर बीपी बस्त्र नहीं होगा जितने भी धातु जैसे सोना चांदी आदि के समान होंगे वे सब उतार लिया जाएगा ।
भी धागा नहीं रहने दिया जाएगा फिर भी मनुष्य की धन दौलत से इतना प्यार ? जिंदा रहते जितने सगे संबंधी आते जाते रहते साथ बैठकर चाय पानी पिया करते मरने के बाद वह भी यही कहते सुना जा सकता है की कितनी देर बाद लाश को घाट ले जाया जाएगा उन्हें अब आप से कोई मतलब नहीं है क्योंकि आपके शरीर से आत्मा रूपी परमात्मा निकल चुके हैं अभी शरीर का कोई महत्व नहीं रहा अब तो उसे इस बात की चिंता सता रही होगी की मृत शरीर से दुर्गंध ना आना शुरू हो जाए ।
जितने भी बेटा, बेटियां, बहुएं, पत्नी आपके मरने के बाद यही कहते हुए सुना जा सकता है की वे पैसा कहां रखकर गए हैं कितने पैसा रखे हैं चाबी कहां है जमीन के कागजात सब कहां हैं उन्हें आपके मरने से ज्यादा आपके कमा कर रखे हुए धन दौलत की चिंता है की उसमें से मेरा हिस्सा कितना होगा । और जब क्रिया कर्म की बारी आता है तो आप ही के कमाए हुए पैसे से थोड़ा सा दान दक्षिणा देने में कोताही करते हैं । यदि यह शरीर नश्वर है तो इस शरीर का इतना घमंड क्यों ? यदि धन-संपत्ति साथ नहीं जाएगा तो बेईमानी से कमाने से क्या फायदा ।
रुपया इस युग में जीने के लिए जरूरी है पर उस रुपए को मेहनत से भी तो कमाया जा सकता है, धन दौलत हमारी जरूरत है हमें हर एक काम के लिए पैसे चाहिए होते हैं चाहे खाने पीने के लिए हो, घर मकान बनाने के लिए, बाल बच्चे को पढ़ाने लिखाने के लिए हो उसके बाद भी हमें पैसे को अपनी कमजोरी नहीं बनाना नहीं चाहिए । यदि आपको ज्यादा पैसा कमाना है तो मेहनत करो भगवान ने सोचने के लिए दिमाग और मेहनत करने के लिए हाथ पैर दिए हैं सोच समझकर मेहनत करके क्यों ना कमाया जाए । हर एक मनुष्य को अच्छे कर्म करना चाहिए क्योंकि अच्छे कर्म ही साथ जाते हैं, इसलिए तो इस कलयुग को कर्म प्रधान कहा गया है ।