रविवार, 21 जून 2020

रामायण की रोचक कहानियां - माता शबरी और श्री राम का मिलाप (पौराणिक कथा)

रामायण काव्य मैं राम भक्तों की कोई कमी नहीं है । एक से एक भक्त हुए जो सिर्फ राम भक्ति मैं ही अपना जीवन लगा दिया । जैसे आकाश के तारे गिने नहीं जा सकते उसी तरह राम भक्त भी गिने नहीं जा सकते । कुछ गिने-चुने भक्त हुए जो आज भी इस कलयुग मैं भी भक्तों को भक्ति की मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं , जैसे राम भक्त वीर हनुमान , भरत , लक्ष्मण , इन सब को तो सब को तो सब कोई जानते हैं , की यह सब प्रभु श्रीराम के लिए क्या-क्या परित्याग किए , संपूर्ण जीवन राम भक्ति के नाम कर जिए । पर आज मैं उस भक्ति की देवी के बारे में बात कर रहा हूं , जो श्रीराम के भक्ति और प्रेम में मोक्ष को प्राप्त कर गई । उनके प्रेम में  श्री राम ऐसे बंधे की उनके जूठन बेर तक प्रसाद समझकर खा लिए ।


 जी हां मैं बात कर रहा हूं माता शबरी की । जाति के भीलनी और संत मतंग ऋषि के शिष्या जिनका नाम शबरी थी । मतंग ऋषि तो बहुत पहले देह त्याग कर स्वर्ग धाम चले गए , पर इस शिष्या को कह गए थे की तुम इसी आश्रम में रहो एक दिन भगवान विष्णु के अवतार , दशरथ नंदन , पुरुषोत्तम श्री राम अपनी  भार्या जनक नंदिनी सीता जी के वियोग में वन - वन भटकते - भटकते वानर राज सुग्रीव के खोज में इस आश्रम में पधारेंगे और तुम्हें दर्शन देंगे । तुम उसका अतिथि सत्कार कर सुग्रीव जी का पता बताकर उनसे भक्ति और मोक्ष का उपदेश पाकर तुम मोक्ष को प्राप्त कर जाओगी ।अपने गुरु के आदेश अनुसार शबरी श्री राम की रोज रास्ता निहारा करती की कब मेरे श्री राम आएंगे ।


आश्रम के तरफ आने वाले रास्ते पर रोज झाड़ू लगाकर उसमें बागों से सुंदर -  सुंदर फूल लाकर बिछाती पता नहीं प्रभु किस दिन आ जाएंगे ।  जब शाम तक प्रभु नहीं आते तो, अगले दिन मुरझाए हुए फूलों को हटाकर फिर से  फूल बिछा देती । वह रोज मीठे मीठे बैर  थाली सजा कर रखती , वह हर बैर चखकर देखती जो बैर खट्टा लगे उसे फेंक देते और जो बैर मीठा लगता उसे थाली में सजाकर रखती । पता नहीं प्रभु कब आ जाए और उन्हें भूख लगी हो, यह सोच सबरी रोज बैर से थाली सजा कर रखती । श्रीराम से भेंट करने की वह वह इतनी उत्सुक थी की यही सब दिनचर्या बन गया था , लोग उसे पगली समझता था । जिस रास्ते को वह साफ-सुथरा करके फूल बिछा कर रखती थी , यदि उस फूलों पर कोई गुजरने का कोशिश करें तो वह विनय पूर्वक उसे मना कर देती । लोग पगली समझ कर इसका कहां मान लेते हैं उस फूलों पर पैर नहीं लगाते ।


एक दिन सबरी की भाग्य का उदय हुआ , और सीता जी के वियोग मैं श्री राम अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ महाराज सुग्रीव का पता पूछते -  पूछते उसके आश्रम में उपस्थित हो गए । जैसे ही श्री राम चंद्र ने अपना परिचय दिए , शबरी जी की नैनों से भक्ति की अश्रु धारा बह निकली । राम जी से भेंट होने से सबरी को ऐसा लगा मानो एक भिखारी को मानिक मिल गया हो , मानो बरसो से प्यासी रेगिस्तान में मूसलाधार बारिश हो रही हो , एक भूखे व्यक्ति को छत्पन भोग मिल गया हो , यही अनुभूति शबरी को हम प्रभु के दर्शन से हुआ । प्रभु को आसन पर बैठा कर वही चख कर रखे हुए मीठे बैर खाने को देते हैं, प्रभु उस बैर को बहुत ही प्रेम से खा रहे हैं । भोजन के उपरांत श्री राम शबरी के गुरु मतंग ऋषि के तपोस्थली को देखने की इच्छा जताते है ।


तब शबरी प्रभु राम को अपने गुरु के उस दिव्य तपोस्थली का दर्शन कराते हैं , जहां उनके गुरु ध्यान लगाते थे । उस तपोस्थली में एक दिव्य तेज प्रकाशमान हो रहा था । शबरी जी श्री राम को बताती है, की इसी स्थल पर मेरे गुरुदेव तपस्या किया करते थे उनके तपस्या के प्रभाव से इस आश्रम के अगल-बगल मनुष्य तो क्या पशु पक्षी भी हिंसक स्वभाव त्याग देते हैं, एक ही घाट पर बाघ, बकरी, हिरण पानी पीते हैं , एक साथ विचरण करते है। उसके बाद शबरी जी अपने गुरु के आदेशानुसार श्री राम जी के मुख से मोक्ष के उपदेश पाकर स्वर्ग धाम को चले गए ।
जय श्री राम, जय हिंद ।
    

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