एक दिन सूर्योदय के समय भगवान बुध के सभी शिष्य उनके प्रतीक्षा में बैठे हुए थे, क्योंकि की प्रवचन का समय हो गया था । कुछ ही देर प्रतीक्षा के उपरांत महात्मा बुद्ध जी अपने दो चार शिष्यों के साथ प्रवचन स्थल पर आते हैं । उनके स्वागत के लिए वहां उपस्थित सभी बौद्ध भिक्षु खड़े होकर उनको प्रणाम करते हैं ।
महात्मा बुध जी अपने हाथों में एक रस्सी लेकर आए, वे अपने आसन पर बैठते ही सबको रस्सी को दिखाते हुए उसमें गांठ बांधने लगे, गांठ बांधने के बाद अपने शिष्यों से बोले क्या वह वही रस्सी है जो मैंने थोड़ी देर पहले तुम्हें दिखाया था ? एक शिष्य हाथ जोड़कर कहा भगवान रस्सी तो वही है पर उसमें गांठ पड़ जाने के कारण वह अपना मूल रूप खो चुका यदि इसमें से गांठ खोल दिया जाए तो वाह अपना मूल रूप में आ जाएगा ।
बुद्ध जी ने रस्सी का दोनों सिरा को पकड़ कर जोर से खींचने लगे गांठ खोलने के बजाय और भी कस के, इस पर एक शिष्य ने कहा हे भगवान ऐसे यदि इसे ऐसे खींचा जाएगा तो गांठ खोलने के बजाय और भी कस जाएगा और बाद में इसे बोलने में बहुत ही परिश्रम करना पड़ेगा । रस्सी के गांठ को खोलने के लिए गांठ को ध्यानपूर्वक देखना होगा की गांठ किस तरह का है कौन सा भाग किधर से खींचने से खुल सकता है ।
तब जाकर गांठ खुलेगी और रस्सी अपने मूल स्वरूप मैं आ जाएगी । उस शिष्य की बातें सुनकर महात्मा बुध बहुत प्रसन्ना हुए, और सभी शिष्यों को संबोधित करके बोलने लगे । हमारी जीवन एक रस्सी की तरह और इसमें लगी गांठ हमारी उसके मुश्किलें है यदि हम बिना सोचे समझे रस्सी के गांठ यानी अपने जीवन की मुश्किलों के साथ रस्सी की तरह व्यवहार करेंगे तो मुश्किलें कम होने के वजाए और भी ज्यादा बढ़ सकती है ।
यदि हम शांत चित्त से सोच समझकर उस मुश्किलों का सामना करेंगे तो जिंदगी की सारे मुश्किलों को खत्म कर बिना गांठ की रस्सी की तरह अपने जीवन को आसानी से जी पाएंग । इससे यही सीख मिलती है कि जी अपने मुश्किलों से जी चुराने की बजाय, जोर आजमाइश करने के बजाए शांत भाव से सोच समझकर उसका हल निकालने की कोशिश किया जाए तो मानव जीवन जीना बहुत आसान हो जाएगा ।
महात्मा बुध जी अपने हाथों में एक रस्सी लेकर आए, वे अपने आसन पर बैठते ही सबको रस्सी को दिखाते हुए उसमें गांठ बांधने लगे, गांठ बांधने के बाद अपने शिष्यों से बोले क्या वह वही रस्सी है जो मैंने थोड़ी देर पहले तुम्हें दिखाया था ? एक शिष्य हाथ जोड़कर कहा भगवान रस्सी तो वही है पर उसमें गांठ पड़ जाने के कारण वह अपना मूल रूप खो चुका यदि इसमें से गांठ खोल दिया जाए तो वाह अपना मूल रूप में आ जाएगा ।
बुद्ध जी ने रस्सी का दोनों सिरा को पकड़ कर जोर से खींचने लगे गांठ खोलने के बजाय और भी कस के, इस पर एक शिष्य ने कहा हे भगवान ऐसे यदि इसे ऐसे खींचा जाएगा तो गांठ खोलने के बजाय और भी कस जाएगा और बाद में इसे बोलने में बहुत ही परिश्रम करना पड़ेगा । रस्सी के गांठ को खोलने के लिए गांठ को ध्यानपूर्वक देखना होगा की गांठ किस तरह का है कौन सा भाग किधर से खींचने से खुल सकता है ।
तब जाकर गांठ खुलेगी और रस्सी अपने मूल स्वरूप मैं आ जाएगी । उस शिष्य की बातें सुनकर महात्मा बुध बहुत प्रसन्ना हुए, और सभी शिष्यों को संबोधित करके बोलने लगे । हमारी जीवन एक रस्सी की तरह और इसमें लगी गांठ हमारी उसके मुश्किलें है यदि हम बिना सोचे समझे रस्सी के गांठ यानी अपने जीवन की मुश्किलों के साथ रस्सी की तरह व्यवहार करेंगे तो मुश्किलें कम होने के वजाए और भी ज्यादा बढ़ सकती है ।
यदि हम शांत चित्त से सोच समझकर उस मुश्किलों का सामना करेंगे तो जिंदगी की सारे मुश्किलों को खत्म कर बिना गांठ की रस्सी की तरह अपने जीवन को आसानी से जी पाएंग । इससे यही सीख मिलती है कि जी अपने मुश्किलों से जी चुराने की बजाय, जोर आजमाइश करने के बजाए शांत भाव से सोच समझकर उसका हल निकालने की कोशिश किया जाए तो मानव जीवन जीना बहुत आसान हो जाएगा ।