बात उस समय की है जब पृथ्वी पर दो असुर भाइयों का उत्पात चरम सीमा पर था । इन असुरो में बढ़ा का नाम हिरनाकश्यप और छोटे का हिरणाख्य था।आज हम बात कर रहे है बड़े भाई हरनाकयशप की।
यह दोनों बहुत ही बलशाली असुर थे यह अपने राज्य में यह घोषणा करवा दी थी कि भगवान की पूजा कोई ना करें मैं ही भगवान हूं सब कोई मेरी पूजा करें विशेष कर विष्णु जी से ज्यादा नफरत करते थे ।क्यों की बिष्णु जी ने ही उसके भाई हिरणाख्य को बरहा अवतार ले कर मारा था।ये असुर कितने वलसाली थे इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की दो भाइयो को मारने के लिए भगवन को दो बार अवतार लेना पड़ा। इस
असुर ने संसार में इतना भयंकर उत्पात मचाया था की ऋषि मुनि देवी देवता मनुष्य सब त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं सबको लगा अब क्या होगा हमें इस दुष्ट से कौन छुटकारा दिलाएगा ऋषि मुनि सब यज्ञ,जाप,ध्यान,पूजा अर्चना नहीं कर पा रहे थे कोई भी काम जिसमें भगवान की आराधना हो उसके राज्य में निषेध था। यदि उन्हें एवं के सैनिकों को यह पता चल जाता कि फलाने जगह पर भगवान की आराधना पूजा हवन हो रहा हो तो वहां जाकर वे मारकाट मचा देते और कहते भगवान की पूजा क्यों कर रहे हो हमारे राजा ही हमारे और सबके भगवान हैं, उन्ही की पूजा करो।ऐसी प्रताडना से प्रजा त्राहिमाम - त्राहिमाम कर रही थी पर क्या किया जाए जो उसे सता रहे थे उन्हें परास्त करना किसी देवी देवता या किसी मनुष्य से संभव नहीं था । क्योंकि हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी से वरदान मिला हुआ था ।
यह दोनों बहुत ही बलशाली असुर थे यह अपने राज्य में यह घोषणा करवा दी थी कि भगवान की पूजा कोई ना करें मैं ही भगवान हूं सब कोई मेरी पूजा करें विशेष कर विष्णु जी से ज्यादा नफरत करते थे ।क्यों की बिष्णु जी ने ही उसके भाई हिरणाख्य को बरहा अवतार ले कर मारा था।ये असुर कितने वलसाली थे इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की दो भाइयो को मारने के लिए भगवन को दो बार अवतार लेना पड़ा। इस
असुर ने संसार में इतना भयंकर उत्पात मचाया था की ऋषि मुनि देवी देवता मनुष्य सब त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं सबको लगा अब क्या होगा हमें इस दुष्ट से कौन छुटकारा दिलाएगा ऋषि मुनि सब यज्ञ,जाप,ध्यान,पूजा अर्चना नहीं कर पा रहे थे कोई भी काम जिसमें भगवान की आराधना हो उसके राज्य में निषेध था। यदि उन्हें एवं के सैनिकों को यह पता चल जाता कि फलाने जगह पर भगवान की आराधना पूजा हवन हो रहा हो तो वहां जाकर वे मारकाट मचा देते और कहते भगवान की पूजा क्यों कर रहे हो हमारे राजा ही हमारे और सबके भगवान हैं, उन्ही की पूजा करो।ऐसी प्रताडना से प्रजा त्राहिमाम - त्राहिमाम कर रही थी पर क्या किया जाए जो उसे सता रहे थे उन्हें परास्त करना किसी देवी देवता या किसी मनुष्य से संभव नहीं था । क्योंकि हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी से वरदान मिला हुआ था ।
जब हरीनाकश्यप अमर होने के लिए तपस्या करने लगा ।वह बर्ह्म जी की घोर तपस्या में लग गए सालों साल तपस्या करते रहे बहुत दिनों तक तपस्या करने के बाद जब बर्ह्म जी आकर उनसे पूछा कि वत्स वरदान मांगो। तो वह बड़ी ही बड़ी ही विनम्रता से हाथ जोड़ कर कहा हे जगत के पालनकर्ता अगर आप मेरे तपस्या से प्रसन्न है तो मुझे अमरत्व का वरदान दे कर मुझे अमर कर दे।
बर्ह्म जी ने बोले हे असुर राज अमरत्व का वरदान में नहीं दे सकता इसके सिवाय तुम जो भी कुछ मांगोगे में देने के लिए तैयार हूँ। पर वो मन नहीं और बोला मुझे अमर ही होना है इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए। इतना कह वह फिर से तपस्या में लग गया। ऐसे ही कितनी बार बर्ह्म जी आये पर वह हर एक बार यही बोले कि मुझे अमर कर दीजिए ब्रह्माजी बोले अमर करना मेरे हाथों में नहीं है जो जीव जन्म लिया है उसे मरना पड़ेगा यही बिधि का विधान है। पर वो नहीं मना । इस घनघोर तपस्या को देख देवता लोग भी पर डरने लगे , उन्हें ये दर सताने लगा की यदि ये अमर का वरदान प् लेता है तो कंही हम लोग से स्वर्ग न छीन ले । तप इतना प्रचंड था की ठंडी के दिन में पानी में खड़ा होकर गर्मी के दिन में चारों तरफ आग जलाकर असुर घोर तपस्या करता रहा अंतिम में ब्रह्माजी बोले वत्स मैं तुम्हें अमरता का वरदान नहीं दे सकता तुम चाहो तो और कुछ मांग सकते हो हिरण्यकश्यप ने सोचा कि मैं कुछ ऐसा मांगूंगा जो अमर से कम ना उसने बर्ह्म जी से मांगा दिन में भी ना मरु और रात में भी ना मरू , अस्त्र से ना मरु ना ही शस्त्र से मरु , सुबह भी न मंरु शाम को भी ना मरू , दिन में भी नहीं और रात में भी नहीं, घर में भी नहीं बाहर में भी नहीं,ना मनुष्य से ना पशु से मेरी मोत नहीं हो । यह सब वरदान बड़ी सोच उसने माँगा समझकर मांगा । हरिणकश्यप की बाते सुन बर्ह्मजी कुछ सोचे फिर उन्हें तथास्तु कह दिए उन्हें यह वरदान दे दिया वरदान पाकर अपने आपको वह अमर समझकर तीनों तीनों लोगों को अपने अधिकार में ले लिया यही कारण था कि वह अपने आप को भगवान घोषित करके सबसे पूजा करवाता क्योंकि भगवान भी अमर होते हैं और उसने सोचा मैं भी अमर हूं ।
बर्ह्म जी ने बोले हे असुर राज अमरत्व का वरदान में नहीं दे सकता इसके सिवाय तुम जो भी कुछ मांगोगे में देने के लिए तैयार हूँ। पर वो मन नहीं और बोला मुझे अमर ही होना है इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए। इतना कह वह फिर से तपस्या में लग गया। ऐसे ही कितनी बार बर्ह्म जी आये पर वह हर एक बार यही बोले कि मुझे अमर कर दीजिए ब्रह्माजी बोले अमर करना मेरे हाथों में नहीं है जो जीव जन्म लिया है उसे मरना पड़ेगा यही बिधि का विधान है। पर वो नहीं मना । इस घनघोर तपस्या को देख देवता लोग भी पर डरने लगे , उन्हें ये दर सताने लगा की यदि ये अमर का वरदान प् लेता है तो कंही हम लोग से स्वर्ग न छीन ले । तप इतना प्रचंड था की ठंडी के दिन में पानी में खड़ा होकर गर्मी के दिन में चारों तरफ आग जलाकर असुर घोर तपस्या करता रहा अंतिम में ब्रह्माजी बोले वत्स मैं तुम्हें अमरता का वरदान नहीं दे सकता तुम चाहो तो और कुछ मांग सकते हो हिरण्यकश्यप ने सोचा कि मैं कुछ ऐसा मांगूंगा जो अमर से कम ना उसने बर्ह्म जी से मांगा दिन में भी ना मरु और रात में भी ना मरू , अस्त्र से ना मरु ना ही शस्त्र से मरु , सुबह भी न मंरु शाम को भी ना मरू , दिन में भी नहीं और रात में भी नहीं, घर में भी नहीं बाहर में भी नहीं,ना मनुष्य से ना पशु से मेरी मोत नहीं हो । यह सब वरदान बड़ी सोच उसने माँगा समझकर मांगा । हरिणकश्यप की बाते सुन बर्ह्मजी कुछ सोचे फिर उन्हें तथास्तु कह दिए उन्हें यह वरदान दे दिया वरदान पाकर अपने आपको वह अमर समझकर तीनों तीनों लोगों को अपने अधिकार में ले लिया यही कारण था कि वह अपने आप को भगवान घोषित करके सबसे पूजा करवाता क्योंकि भगवान भी अमर होते हैं और उसने सोचा मैं भी अमर हूं ।
ऎसे ही बहुत दिनों तक चलता रहा ।बहुत दिनों के बाद उसके घर एक बालक का जन्म हुआ बालक का नाम रखा गया प्रह्लाद । प्रह्लाद का जन्म होते ही राजा रानी ख़ुशी से झूम उठे। बड़े ही लाड़ से प्रह्लाद का पालन पोसन होने लगा । जब वे पाठशाला जाने लायख हुए तो माता पिता उसे गुरु जी के आश्रम शिक्षा के लिए भेज दिया। आश्रम में वो पढ़ाई के साथ - साथ श्री हरी नाम संगकृतंन् करने लगा और अपने साथ पड़ने वाले बच्चों को भी भजन कीर्तन करवाने लगा।वे पढ़ाई कम हरी भजन में ज्यादा मन लगता था। ये नारायण नारायण जप सब बच्चों से करवाता था।उसके गुरु को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत बार समझाया की तुम दुश्मन का नाम क्यों ले रहे हो यदि ये बात तुम्हारे पिता जी के पास पहुँचा तो तुम्हारे लिए और मेरे लिए भी ठीक नहीं होगा। पर प्रह्लाद पर इसका कोई असर नहीं हुआ। कितने बार गुरु जी से उन्हें मर भी पड़ी। थक रार कर गुरु जी उन्हें महराज के पास ले गए और पूरी कहानी सुनाया। प्रह्लाद के पिजा जी भी उन्हें समझाया और दुश्मन ला नाम न लेने की बात कही पर प्रह्लाद नहीं माना । वह तो मानो हरी रंग में रंग चूका था । उलटा अपने पिताजी को ही समझाने लगे हे पिता जी आप जिसका नाम जपने से हमें मना कर रहे है आपको पता है , वही संसार के सार है , वही सब का पालन करता है , वही सबके माता-पिता है ,वही सबके भाई बन्धु सखा है , वही पुरे डांसर के रचेता है , वही संसार के कण-कण में है । इस लिए पिता जी आप भी मेरे साथ उनके शरण में आ जाइये आपका भला होगा।
तब हिरण्यकश्यप को बहुत गुस्सा आया और अपने सैनिको को प्रह्लाद को मारने का हुक्म दे दिया । प्रह्लाद को मारने के लिए सैनिकों ने उसे पहाड़ की चोटियों से नीचे फेंक दिया उतना दूर से गिरने पर भी प्रह्लाद को लगा कि वह फूलों की सेज पर आकर गिरा हो। उसके बाद सैनिकों ने उसे जहरीले सांपों से भरे कुएं में उसे छोड़ दिया वह सांप भी उसको नहीं काटा । उसके बाद खोलते हुए तेल में प्रह्लाद को बैठा दिया गया उसके बाद भी प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ वह हरि का नाम लेते रहा।अंतिम में हिनाकश्यप थक हार कर अपनी बहन होलिका से बात की होलिका को ब्रह्मा जी से आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका ने अपने भाई से कहा महाराज आप मुझे एक मौका दें मैं इसे जला के मार दूंगी क्योंकि मैं आग में जलती नहीं हूं और एक लकड़ी के ढेर में बैठ गई और सैनिकों से बोली कि आग लगा दो क्योंकि होलीका तो जलेगी नहीं प्रह्लाद जल के मर जाएगा लकड़ी के ढेर में आग लगा दी गई आग जला होलिका जल गई प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। सब तरह से जतन कर के देख लेने के बाद जब प्रह्लाद बध नहीं हुआ तो अंत में भरी सभा में हिरनाकश्यप प्रह्लाद से पूछा कि इतना जतन करने के बाद भी तुम्हें मृत्यु नहीं आई तुम्हारे भगवान कहां है मैं देखना चाहता हूं और नहीं तो मैं तुम्हें अभी अपने तलवार से मार दूंगा बताओ तुम्हारे भगवान कहां प्रह्लाद ने बड़ी मासूमियत से कहा पिताजी भगवान हर एक कण - कण में है जल में थल में अग्नि में आकाश पाताल पवन में हममें तुममें तलवार में इस खंभा( सामने खम्भे की और इसरा करते हुआ) में सब जगह हरी विराजमान है बस उनको देखने के लिए एक भक्त की आंख होनी चाहिए इतना बात सुनकर हरीनाकश्यप ने अपनी गधा उठाए और बोले कि तुम्हारा भगवान हर एक जगह है तो तुम्हारा भगवन इस खंभे मैं भी निकलना चाहिए प्रह्लाद ने कहा हाँ जरूर निकलेगा तब हिरण्यकश्यप ने अपने गदा से उसको उस खम्भे पर प्रहार किया ।
प्रहार इतना जोरदार था की खंभा भरभरा का जमीन पर बिखर गया। तब उसी टूटे हुआ खम्भे के जगह से भगवान नरसिंह (नरहरि) विराजमान थे नरसिंह का मतलब शरीर नर (मनुष्य ) का और सर सिंह का इसलिए उन्हें नरहरी भगवान भी कहा जता है या नरसिंह नरसिंह भगवान कहा जाता है । नरसिंह को हरीनाकश्यप जेसे ही मारने उठा भगवन ने अपने भुजाओं से उठा लिया और ले जाके घर और बाहर के बीच देहरी( दरवाजा या चौखट) पर बैठ गये।और हरीनाकश्यप को अपने गोदी रख लिया। सोचने वाली बात है की ब्रह्मा जी से जो उन्हें वरदान मिला था उसमें यह था कि घर में ना बाहर में तो नरहरी जी उन्हें घर में भी नहीं और बाहर में भी नहीं जो घर का डेयरी बना होता है वह घर भी नहीं होता और बाहर भी नहीं होता उसमें बैठ गए ना दिन ना रात सूरज डूबने के बाद और अंधेरा होने से पहले का जो समय होता है वह न दिन होता है और ना रात होता है वह संध्या काल कहा जाता है । अस्त्र से ना शस्त्र उनके पास कोई अस्त्र था ना कोई शस्त्र था उनके पास बड़े-बड़े नाखून थे। और एक बात ना मनुष्य पशु वह न मनुष्य थे और ना पशु दोनों का मिल कर नरसिंह बने है धड़ ( शारीर) मनुष्य का का और सिर सिंह का देहरी पर बैठकर उन्होंने अपने गोदी में हरीनाकश्यप को लेकर अपने नाखूनों से उसका अदर (छाती) चीर दिया और उनका वध कर दीये।
बधकरने के बाद जोर-जोर से गर्जना करने लगे गर्जना इतना भयंकर था कि तीनों लोग इससे भयभीत हो गए सब देवी देवता वहां पहुंचे और सबने जाकर प्रह्लाद से कहा कि प्रह्लाद तुम ही इन्हें शांत कर सकते हो तुमसे ही शांत होंगे तब जाकर प्रल्हाद में नरहरी जी को शांत करने के लिए प्रर्थना किया तब भगवन शांत हो गए। सभी देवी देवता मिलकर भगवन नरसिंह जी स्तुति की और हरीनाकश्यप का राज प्रह्लाद को सौंप कर सब अपने-अपने घर चले गए गए । आगे चलकर यह प्रह्लाद बहुत ही प्रतापी राजा बने । हरीनाकश्यप के लिए ही श्री विष्णु भगवान को नरसिंह का अवतार लेना पड़ा ये बिष्णु जी की दश अवतारों में से एक हैं ।। बोलिए एक बार नरसिंह भगवान की जय।
चरित्र
क्या आप जानते है ? हनुमान जी को सिंदूर क्यों चढ़ाया जाता है।
रामायण की रोचक कहानिया राम बड़ा या राम की नाम।
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भारत का सबसे बड़ा मंदिर कँहा पर स्थित है।
क्यों नहीं हो सका था श्री राम जी और सीता का विवाह शुभ महुर्त में?
चरित्र
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