शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

क्या आप जानते हैं भगवान विष्णु जी को नरसिंह अवतार क्यों लेना पड़ा था ?



बात उस समय की है जब पृथ्वी पर दो असुर भाइयों का उत्पात चरम सीमा पर था । इन असुरो में बढ़ा का नाम हिरनाकश्यप और छोटे का हिरणाख्य था।आज हम बात कर रहे है बड़े  भाई हरनाकयशप की।
यह दोनों बहुत ही बलशाली असुर थे यह अपने राज्य में यह घोषणा करवा दी थी कि भगवान की पूजा कोई ना करें मैं ही भगवान हूं सब कोई मेरी पूजा करें विशेष कर विष्णु जी से  ज्यादा नफरत करते थे ।क्यों की बिष्णु जी ने ही उसके भाई हिरणाख्य को बरहा अवतार ले कर मारा था।ये असुर कितने वलसाली थे इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की दो भाइयो को मारने के लिए भगवन को दो बार अवतार लेना पड़ा। इस
असुर ने संसार में इतना भयंकर उत्पात मचाया था की ऋषि मुनि देवी देवता मनुष्य सब त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं सबको लगा अब क्या होगा हमें इस दुष्ट  से कौन छुटकारा दिलाएगा ऋषि मुनि सब यज्ञ,जाप,ध्यान,पूजा अर्चना नहीं कर पा रहे थे कोई भी काम जिसमें भगवान की आराधना हो उसके राज्य में निषेध था। यदि उन्हें एवं के सैनिकों को यह पता चल जाता कि फलाने जगह पर भगवान की आराधना पूजा हवन हो रहा हो तो वहां जाकर वे  मारकाट मचा देते और कहते भगवान की पूजा क्यों कर रहे हो हमारे राजा ही हमारे और सबके भगवान हैं, उन्ही की पूजा करो।ऐसी प्रताडना से प्रजा त्राहिमाम - त्राहिमाम कर रही थी पर क्या किया जाए जो उसे सता रहे थे उन्हें परास्त करना किसी देवी देवता या किसी मनुष्य से संभव नहीं था । क्योंकि हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी से वरदान मिला हुआ था ।


जब हरीनाकश्यप अमर होने के लिए तपस्या करने लगा ।वह बर्ह्म जी की घोर तपस्या में लग गए सालों साल तपस्या करते रहे बहुत दिनों तक तपस्या करने के बाद जब बर्ह्म जी आकर  उनसे पूछा कि वत्स वरदान मांगो। तो वह बड़ी ही बड़ी ही विनम्रता से हाथ जोड़ कर कहा हे जगत के पालनकर्ता अगर आप मेरे तपस्या से प्रसन्न है तो मुझे अमरत्व का वरदान दे कर मुझे अमर कर दे।
बर्ह्म जी ने बोले हे असुर राज अमरत्व का वरदान में नहीं दे सकता इसके सिवाय तुम जो भी कुछ मांगोगे में देने के लिए तैयार हूँ। पर वो मन नहीं और बोला मुझे अमर ही होना है इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए। इतना कह वह फिर से तपस्या में लग गया। ऐसे ही कितनी बार बर्ह्म जी आये  पर वह हर एक बार यही  बोले कि मुझे अमर कर दीजिए ब्रह्माजी बोले अमर करना मेरे हाथों में नहीं है जो जीव जन्म लिया है उसे मरना पड़ेगा यही बिधि का विधान है। पर वो नहीं मना । इस घनघोर तपस्या को देख देवता लोग भी  पर डरने लगे , उन्हें ये दर सताने लगा की यदि ये अमर का वरदान प् लेता है तो कंही हम लोग से स्वर्ग न छीन ले । तप इतना प्रचंड था की  ठंडी के दिन में पानी में खड़ा होकर गर्मी के दिन में चारों तरफ आग जलाकर असुर  घोर तपस्या करता रहा अंतिम में ब्रह्माजी बोले वत्स मैं तुम्हें अमरता का वरदान नहीं दे सकता तुम चाहो तो और कुछ मांग सकते हो हिरण्यकश्यप ने सोचा कि मैं कुछ ऐसा मांगूंगा जो अमर से कम ना उसने बर्ह्म  जी से मांगा  दिन में भी ना मरु और रात में भी ना मरू , अस्त्र से ना मरु ना ही शस्त्र से मरु , सुबह भी  न मंरु शाम को भी ना मरू ,  दिन में भी नहीं और रात में भी नहीं,  घर में भी नहीं बाहर में भी नहीं,ना मनुष्य से ना पशु से  मेरी मोत नहीं हो । यह सब वरदान बड़ी सोच उसने माँगा समझकर मांगा । हरिणकश्यप की बाते सुन बर्ह्मजी कुछ सोचे फिर  उन्हें तथास्तु कह दिए उन्हें यह वरदान दे दिया वरदान पाकर अपने आपको वह अमर समझकर तीनों तीनों लोगों को अपने अधिकार में ले लिया यही कारण था कि वह अपने आप को भगवान घोषित करके सबसे पूजा करवाता क्योंकि भगवान भी अमर होते हैं और उसने सोचा मैं भी अमर हूं ।

ऎसे ही बहुत दिनों तक चलता रहा ।बहुत दिनों के बाद उसके घर एक बालक का जन्म हुआ बालक का नाम रखा गया प्रह्लाद । प्रह्लाद का जन्म होते ही राजा रानी ख़ुशी से झूम उठे। बड़े ही लाड़ से प्रह्लाद का पालन पोसन होने लगा । जब वे पाठशाला जाने लायख हुए तो माता पिता उसे गुरु जी के आश्रम शिक्षा के लिए भेज दिया। आश्रम में वो पढ़ाई के साथ - साथ श्री हरी नाम संगकृतंन् करने लगा और अपने साथ पड़ने वाले बच्चों को भी भजन कीर्तन करवाने लगा।वे पढ़ाई कम हरी भजन में ज्यादा मन लगता था। ये   नारायण नारायण  जप सब बच्चों से करवाता था।उसके गुरु को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत बार समझाया की तुम दुश्मन का नाम क्यों ले रहे हो यदि ये बात तुम्हारे पिता जी के पास पहुँचा तो तुम्हारे लिए और मेरे लिए भी ठीक नहीं होगा।  पर प्रह्लाद पर इसका कोई असर नहीं हुआ। कितने बार गुरु जी से उन्हें मर भी पड़ी। थक रार कर गुरु जी उन्हें महराज के पास ले गए और पूरी कहानी सुनाया। प्रह्लाद के पिजा जी भी उन्हें समझाया और दुश्मन ला नाम न लेने की बात कही पर प्रह्लाद नहीं माना । वह तो मानो हरी रंग में रंग चूका था । उलटा अपने पिताजी को ही समझाने लगे हे पिता जी आप जिसका नाम जपने  से हमें मना कर रहे है आपको पता है , वही संसार के सार है , वही सब का पालन करता है , वही सबके माता-पिता है ,वही सबके भाई बन्धु सखा है , वही पुरे डांसर के रचेता है , वही संसार के कण-कण में है । इस लिए पिता जी आप भी मेरे साथ उनके शरण में आ जाइये आपका भला होगा। 


तब हिरण्यकश्यप को बहुत गुस्सा आया और अपने सैनिको को प्रह्लाद को मारने का हुक्म दे दिया । प्रह्लाद को मारने के लिए सैनिकों ने उसे  पहाड़ की  चोटियों से नीचे फेंक दिया उतना दूर से गिरने पर भी प्रह्लाद को लगा कि वह फूलों की सेज पर आकर गिरा हो। उसके बाद  सैनिकों ने उसे  जहरीले सांपों से भरे कुएं में उसे छोड़ दिया वह सांप भी  उसको नहीं काटा । उसके बाद  खोलते हुए तेल में प्रह्लाद को बैठा दिया गया उसके बाद भी प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ वह हरि का नाम लेते रहा।अंतिम में हिनाकश्यप थक हार कर अपनी बहन होलिका से बात की होलिका को ब्रह्मा जी से   आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका ने अपने भाई से कहा   महाराज आप मुझे एक मौका दें मैं इसे जला के मार दूंगी क्योंकि मैं आग में जलती नहीं हूं और एक लकड़ी के ढेर में बैठ गई और सैनिकों से बोली कि  आग लगा दो क्योंकि होलीका तो जलेगी नहीं प्रह्लाद जल के मर जाएगा लकड़ी के ढेर में आग लगा दी गई आग जला होलिका जल गई प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। सब तरह से जतन कर के देख लेने के बाद जब प्रह्लाद बध नहीं हुआ तो अंत में भरी सभा में हिरनाकश्यप प्रह्लाद से पूछा कि  इतना जतन करने के बाद भी तुम्हें मृत्यु नहीं आई तुम्हारे भगवान कहां है मैं देखना चाहता हूं और नहीं तो मैं तुम्हें अभी अपने तलवार से मार दूंगा बताओ तुम्हारे भगवान कहां प्रह्लाद ने बड़ी मासूमियत से कहा पिताजी भगवान हर एक कण - कण में है  जल में थल में अग्नि में आकाश पाताल पवन में हममें तुममें तलवार में इस खंभा( सामने खम्भे की और इसरा करते हुआ) में सब जगह हरी  विराजमान है बस उनको देखने के लिए एक भक्त की आंख होनी चाहिए इतना बात सुनकर हरीनाकश्यप ने अपनी गधा उठाए और बोले कि   तुम्हारा भगवान हर एक जगह है तो  तुम्हारा भगवन इस खंभे मैं भी निकलना चाहिए प्रह्लाद ने कहा हाँ  जरूर  निकलेगा तब हिरण्यकश्यप ने अपने गदा से  उसको उस खम्भे पर प्रहार किया ।


प्रहार इतना जोरदार था की खंभा भरभरा का जमीन पर बिखर गया। तब उसी टूटे हुआ खम्भे के जगह से  भगवान नरसिंह (नरहरि) विराजमान थे नरसिंह का  मतलब शरीर नर (मनुष्य ) का और सर सिंह का इसलिए उन्हें नरहरी भगवान भी कहा जता है या नरसिंह नरसिंह भगवान कहा जाता है । नरसिंह को हरीनाकश्यप जेसे ही मारने उठा भगवन ने  अपने भुजाओं से उठा लिया  और ले जाके घर और बाहर के बीच देहरी( दरवाजा या  चौखट) पर बैठ गये।और  हरीनाकश्यप को अपने गोदी रख लिया। सोचने वाली बात है की ब्रह्मा जी से जो उन्हें वरदान मिला था उसमें यह था कि घर में ना बाहर में तो नरहरी जी उन्हें घर में भी नहीं और बाहर में भी नहीं जो घर का डेयरी बना होता है वह घर भी नहीं होता और बाहर भी नहीं होता उसमें बैठ गए ना दिन ना रात सूरज डूबने के बाद और अंधेरा होने से पहले का जो समय होता है वह न दिन होता है और ना रात होता है वह संध्या काल कहा जाता है । अस्त्र से ना शस्त्र उनके पास कोई अस्त्र था ना कोई शस्त्र था उनके पास बड़े-बड़े नाखून थे। और एक बात ना मनुष्य पशु वह न मनुष्य थे और ना पशु  दोनों का मिल कर नरसिंह बने है  धड़ ( शारीर)  मनुष्य का का और सिर सिंह का देहरी पर बैठकर उन्होंने अपने गोदी में हरीनाकश्यप को लेकर अपने नाखूनों से उसका अदर (छाती) चीर दिया  और उनका वध कर दीये।
बधकरने के बाद जोर-जोर से गर्जना करने लगे गर्जना इतना भयंकर था कि तीनों लोग इससे भयभीत हो गए सब देवी देवता वहां पहुंचे और सबने  जाकर प्रह्लाद से कहा कि प्रह्लाद तुम ही इन्हें शांत  कर सकते हो तुमसे ही शांत होंगे तब जाकर प्रल्हाद में नरहरी जी को शांत करने के लिए प्रर्थना किया तब भगवन शांत हो गए।  सभी देवी देवता मिलकर भगवन नरसिंह जी स्तुति की और हरीनाकश्यप का राज प्रह्लाद को सौंप कर सब अपने-अपने घर चले गए गए । आगे चलकर यह प्रह्लाद बहुत ही प्रतापी राजा बने । हरीनाकश्यप के लिए ही  श्री विष्णु भगवान को नरसिंह का अवतार लेना पड़ा ये बिष्णु जी की दश अवतारों में से एक हैं ।।                            बोलिए एक बार नरसिंह  भगवान                              की जय।
चरित्र

क्या आप जानते है ? हनुमान जी को सिंदूर क्यों चढ़ाया जाता है।

रामायण की रोचक कहानिया राम बड़ा या राम की नाम।

क्यों रहना पड़ा था सीता जी को श्री लंका में ?

भारत का सबसे बड़ा मंदिर कँहा पर स्थित है।

क्यों नहीं हो सका था श्री राम जी और सीता का विवाह शुभ महुर्त में?



रविवार, 20 अक्टूबर 2019

चरित्र (Character)

चरित्र शब्द दिमाग में आते ही एक ही व्यक्ति की छवि मन में उभरती है श्री राम जी । एक ही सबसे ज्यादा चरित्रवान मनुष्य पूरे ब्रह्मांड में हैं हुए हैं श्री रामचंद्र जी । यदि चरित्र अपनाना हो तो इन्हीं का चरित्र अपनाना चाहिए ।
Pauranik ktha

ऐसे तो श्री राम जी चरित्र , मर्यादा , पितृ भक्ति, दयालुता की खान है । इसलिए उनका एक और भी नाम है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम । चरित्र मनुष्य की बहुत बड़ी पूंजी होती है जो मनुष्य को बहुत कष्टों से बचाती है ।
Ram katha Ram bada ya ram kanam

यदि आपका चरित्र साफ है तो आपको गांव , समाज , कुटुंब में आपका मान प्रतिष्ठा की बृद्धि होगी । समाज के लोग आपको सम्मान के दृष्टि से देखेंगे समाजिक कार्यों में आपको ऊंचा स्थान प्राप्त होगा ।
Ramayan-hindi-story.

उदाहरण के तौर पर यदि आप किसी गांव मोहल्ले में रहते हो आपका चरित्र साफ सुथरा है ये सबको पता है । आप कोई भी बुरा काम नहीं करते हैं कभी किसी से लड़ाई नहीं करते हैं कोई बुरी संगत में नहीं रहते हैं ।
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संयोगवश आपका किसी से झगड़ा हो जाता है लड़ाई झगड़ा में कब किसको गाली गलौज कर दे या मारपीट कर दे पता नहीं चलता आदमी कितने भी शांत स्वभाव के हो गुस्से में कुछ ना कुछ हो ही जाता है ।


उसके बाद जिससे आपका झगड़ा हुआ है वह आपको पंच के सामने खड़ा करेगा यह आप पर कोर्ट में केस कराएगा । उस समय आपको अपने स्वच्छ और साफ-सुथरी चरित्र का लाभ मिलेगा । यदि गलती उसकी है तो सब लोग आपके साथ रहेंगे ही , पर यदि गलती आपका भी हो तो भी के पक्ष में बहुत से लोग खड़े रहेंगे और दूसरे लोगों को भी यह समझाने की कोशिश करेंगे की यह आदमी ऐसा गलती है नहीं कर सकता क्योंकि यह आदमी एक चरित्रवान आदमी है।


 इसका चरित्र साफ है । भले ही इस झगड़े में आपका ही दोस्त क्यों ना हो पर साफ-सुथरी चरित्र के कारण आपको ही जीत मिलेगी चाहे गांव के पक्ष में हो या कोट मैं जज के सामने और और यदि आपका दोष सिद्ध भी हो जाता है तो भी आपका पिछला रिकॉर्ड देखते हुए आपसे नरमी बरती जा सकती है ।


इसलिए अपने चरित्र को साफ रखिए कभी भी ऐसा काम मत कीजिए जो समाज के नजर में गलत हो यदि आप गलत काम के आदि है आप शराब पीते हैं जुआ खेलते हैं या ऐसा कोई भी काम करते हैं जिसने समाज को गंदा करता हो तो आप पर कोई विश्वास नहीं करेगा यदि आप किसी से झगड़ते हैं ।


तो आपका दोष नहीं रहने पर भी सबके नजर में आप ही गुनहगार होंगे और सब कोई आप ही को दोषी पर ठहराएंगे । इसलिए अपने आप को गलत कामों से दूर रखें श्री राम के बताए हुए मार्ग पर चलने की कोशिश करें यदि आप उसमें तो चार परसेंट भी बताएं मार्ग पर चलते हैं तो आप घर गृहस्ती में कभी असफल नहीं होंगे और अपने गृहस्थ जीवन को बड़े ही आसानी और कुशलता के साथ चला पाएंगे ।                                                                 ।।जय श्री राम।।              

सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

क्या आप जानते हैं ? हनुमान जी को सिंदूर क्यों चढ़ाया जाता है।

 You know? Why is vermilion offered to Hanuman ji.                                                 Kya aap jante hai Hnuman ji ko sindur kyo chadaya jata hi.

हिंदू धर्म के अनुसार यह माना जाता है कि सिंदूर सिर्फ देवियों को चढ़ाया जाता है पर हनुमान जी ऐसे देवता हैं जिन्हें सिंदूर चढ़ाया जाता इसका कारण भी बहुत मजेदार है ।


बात उस समय की है जब श्री रामचंद्र जी बनवास से लौटकर अपने राजकाज में रम गए थे । प्रजा बहुत खुशहाल थी ऐसे राजा पाकर पूरे अयोध्या नगर में प्रजा बहुत खुश थे और रामचंद्र भी अपने प्रजा को अपने पुत्र के समान मानकर राज करते थे ।


हनुमान जी अयोध्या में ही थे एक दिन माता सीता अपने महल में सिंदूर लगा रही थी । माता को सिंदूर लगाते देख हनुमान जी बड़ी कोतुहल के साथ देख रहे थे । एक तो जाति के बंदर और दूसरे हनुमान जी अपने स्वभाव से चंचल उन्हें यह सोचकर बड़ी आश्चर्य हो रहा था कि आखिर माता यह लाल चीज अपने सर पर क्यों लगा रहे हैं।


 हनुमान जी धीरे धीरे माता सीता के करीब गए और बड़ी उत्सुकता के साथ माता जी से पूछ लिया हे माते आप यह लाल चीज क्या लगा रही हैं । माता को हनुमान जी के आवाज में एक निश्चल , अबोध बालक का आवाज सा प्रतीत हुआ । हनुमान जी से माता सीता का रिश्ता एक बेटे की तरह ही था और हनुमान जी भी सीता जी को अपनी मां हे मानते थे ।


ऐसा सवाल सुन मां सीता ने हनुमान जी को समझाते हुए बोले यह सिंदूर है शादीशुदा महिलाएं इसे अपने मांग में लगाती हैं । फिर हनुमान जी ने बड़ी भोलेपन से कहें इससे लगाने से फायदा क्या होता है सीता जी कोई जवाब नहीं सूझा उसने सोचा सीधा- साधा सा कोई जवाब इनको दे देता हूं नहीं तो यह ऐसे ही मुझे सताता रहेगा ।


 माता सीता ने हनुमान जी से कहे यह सिंदूर लगाने से आपके स्वामी और मेरे पति श्री रामचंद्र जी बहुत प्रसन्न हो जाते हैं ।इतना कह सीता जी हनुमान जी से पिंड छुड़ा कर दूसरी तरफ चली  गई । हनुमान जी वहां बैठे बैठे सोचने लगे । उधर सीता जी हनुमान जी को समझाने के बाद श्री रामचंद्र के पास जाकर बैठ गए और हनुमान जी से हुए वार्तालाप को राम जी की सुना रहे थे कह रहे थे की हनुमान कैसे एक बालक की तरह मुझसे सवाल पर सवाल किए जा रहे हैं थे ।


 यह सब बात हो ही रहा था की अचानक दोनों की नजर उधर से आते हुए हनुमान जी पर पड़े पहली नजर में तो वे समझ ही नहीं पाए थे कि यह कौन है क्योंकि उनका पूरा शरीर लाल ही लाल वह अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगाकर लाल हो गए थे । राम जी हंसते- हंसते हनुमान जी से बोले हे हनुमान आपने अपना यह दशा कैसी बना ली हनुमान जी सामने आकर हाथ जोड़कर बोल।


 हे प्रभु माताजी सिंदूर लगा रही थी तब मैंने पूछा कि आप सिंदूर क्यों लगा रहे हैं तब माताजी ने मुझसे कहीं की सिंदूर लगाने से आप प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए माता ने सिंदूर लगाई मैंने सोचा यदि थोड़ा सा सिंदूर लगाने से आप खुश हो जाते हैं तो क्यों ना मैं पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लू इससे आप कितना खुश हो जाएंगे । हनुमान जी के बातों से राम और सीता जी बहुत प्रसन्न हुए उनके सेवा भाव अपने स्वामीको खुश करने की सोच वे बहुत प्रसन्न हुए ।


 सच्चा सेवक का काम हमेशा ही अपने मालिक को खुश रखने का होता है और यह तो पूरा संसार जानती है कि हनुमानजी से बड़ा कोई सेवक नहीं हुआ । हनुमान जी के सेवा भाव से श्री रामचंद्र जी और माता सीता जी ने हनुमान जी को यह आशीर्वाद दिया की आज से तुम्हें जो सिंदूर चढ़ आएगा उसकी हर एक मनोकामना पूर्ण होगी । इसलिए हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाया जाता है।
               (स्रोत रामायण)
      

बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

रामायण की रोचक कहानियां- राम बड़ा या राम का नाम ?

बात उस वक्त की है जब श्रीराम अपनी वानर सेना लेकर लंका जाने के लिए सागर तक पहुंचे थे । वहां पहुंचने के बाद जब श्रीराम ने विशाल समुद्र को देखा तब राम जी चिंता में पड़ गए कि आखिर लंका तक कैसे जाया जाएगा वह भी अपनी सेना के साथ । तभी अम्बुवान सहित सभी लोगों ने उन्हें समुद्र से रास्ता देने की आग्रह करने की सलाह दी । श्री राम जी ने समुद्र जी को प्रसन्न करने के लिए कई दिनों तक पूजा अर्चना की । पूजा अर्चना से जो समुद्र जी दर्शन नहीं दिए तब श्री राम जी का धैर्य जवाब दे दिया ओर अपना गांडीव उठा है और उसमें बान चढ़ा दिया और क्रोधित होकर उसने कहा कि यदि यह समुद्र मुझे रास्ता नहीं देगी तो मैं इस समुद्र को ही सिखा दूंगा ।


यह देख समुद्र जी हाथ जोड़कर श्री राम के चरणों में गिर पड़े , उन्होंने अपनी मजबूरी सुनाएं महाराज यदि मैं अपने जल से आपको श्रीलंका जाने के लिए रास्ता दे दूं तुम मेरे जल में बहुत सारे जीव जंतु हैं वह मर जाएंगे इसलिए मैं आपको रास्ता देने में असमर्थ हूं । यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं एक बीच का रास्ता आपको बताता हूं, यदि आप मेरे ऊपर से सेतु बना कर श्रीलंका तक चले जाएं तो इसमें किसी का नुकसान नहीं होगा आपका काम भी हो जाएगा ।


 तब राम से बोले क्या यह संभव है, तब समुद्र जी ने श्री राम जी को उपाय सुझाया भगवान आपकी सेना में नल नील नाम के दो वानर योद्धा है वे विश्वकर्मा जी के पुत्र हैं वह शिल्प कला में बहुत ही निपुण और खास बात एक यह भी है की उन्हें एक श्राप है की वे जो भी वस्तु जल मैं फेकेंगे वह डूबेगा नहीं । इतना कहकर समुद्र जी अंतर्ध्यान हो गए। उसके बाद जी ने नल और नील को बुलवाया और सब बातें बताएं ।


 नल और नील श्री रामचंद्र के बात से पुल बनाने के लिए तैयार हो गए पर उन्होंने एक शर्त रखी की हर एक पत्थर पर पहले राम नाम लिखेंगे उसके बाद पानी में डाला जाएगा सब ने उसके शर्त मान लिया । सेतु बनाने का काम शुरू हो गया बहुत ही जोर शोर से काम चल रहा था। सभी बंदर और भालू इस काम में बड़े उत्साह के साथ लगे गए जिससे जितना बड़ा पत्थर उठ पाता वह उतने बड़ा पत्थर लेकर नल नल के पास पहुंच जाते वहां हर एक दिशाओं में जय श्री राम की नारा गूंज रही थी।


एक दिन श्री राम जी संध्या के समय समुद्र तट पर  एकांत में बैठे थे अगल बगल कोई नहीं था श्री राम जी के मन में वह बात याद आई जो नल नील ने कहा था की बिना राम नाम लिखें मैं पत्थर पानी पर नहीं डालूंगा । उन्होंने सोचा यदि राम नाम लिखने से पत्थर पानी में तैरने लगे मैं खुद राम हूं, मैं देखता हूं एक पत्थर फेंक के पानी में तैरता है या नहीं यह सोच रामजी ने एक छोटे से पत्थर के टुकड़े को लिए और पानी में दे मरा पानी में पत्थर पडते ही डूब गया।


 राम जीे बड़े आश्चर्यचकित हुए, राम नाम लिखा पत्थर तैर रहा था और राम ने जो पत्थर अपने हाथो से पानी ने डाले वह डूब गया । यह सब घटना हनुमान जी कुछ दूर से देख रहे थे उन्होंने राम जी के सामने आकर हाथ जोड़कर बोले प्रभु आप यही सोच रहे होंगे कि मेरा नाम लिखा हुआ पत्थर पानी में तैर रहा है और मेरा फेंका हुआ पानी पत्थर पानी में क्यों डूब गया मेरे साथ भी ऐसा ही होता है आप साक्षात भगवान श्रीराम हैं पर आप उड़ नहीं सकते और मैं आपका सेवक आपका नाम लेते ही हवा में उड़ जाता हूं इसलिए हे प्रभु आप तो बड़े हैं पर आपका नाम आपसे से भी बड़ा है।                               ।।इसलिए राम से भी बड़ा है राम का नाम।।
                                     (स्रोत रामायण)