बात उस समय की है,जब राम और सीता जी की शादी हो चुकी थी।दोनो एकांत में बेठ कर वार्तलाप कर रहे थे।उस समय सीता जी ने राम जी से कहा प्रभु मे बहुत दिनो से आप से एक बात कहना चाह रही हुँ। श्री राम जी मुस्कुराते हुँ कहे कहिए क्या कहना चाहती है आप।सीता जी बोली जब में आपको पहली बार जनकपुर की पुष्प बाटिका में देखा था उसी समय मन ही मन में एक मन्नत माँगी थी ,कि यदि आप मुझे पति रूप में मिल जाते तो में व्रह्ममण भोजन कराऊगी ।अब जब आप मुझें पति रूप में मिल गये है तो अपना मन्नत पुरी करना चाहती हुँ।राम जी बोले इस में क्या बडी बात है, हमारे राज्य में व्रह्ममनो की कमी है,क्या? जब आप चाहेंगी तब मे तब में एक क्या कई व्रह्ममन को बुला लुंगा, आप अपना मन्नत पुरी कर लिजीएगा । तब सीता जी बोली में ऐसे तैसें बह्ममन को भोजन नही कारुगी, जो ब्रह्ममन आज तक किसी के घर भोजन नही किया हो मे उसी व्रह्ममन को कराऊंगी। तब राम जी चिंता मन पड़ गए ऐसा व्रह्ममन में कहाँ से लाऊगा । वे इस बात से भी चिंतीत थे, कि क्योकि सीता जी वचन दे चुके थे। श्री राम जी की तब नारद जी की याद आई क्यों कि तीनो लोक हाल खबर जितना नारद को पता होता है शायद ही किसी की पता हो , इस लिए श्री राम जी देवऋषी नारद जी की याद किये । याद करते ही नारद जी नारायण-नारायणा का जाप करते हुए उपस्थित हो गए। नारद जी हाथ जोड़ कर बोले हे प्रभु आपने इस सेवक को केसें याद किया । राम जी ने सिता जी को दिया हुआ वचन के बारे में बताये और बोले हे महाऋषी आप तो तीनो लोक में भ्रमण करते है , मुझे एक ऐसा व्रह्ममन ढुढ कर ला दिजीए जी आज तक किसी के घर भोजन ना किया हो । नारद जी राम जी की आज्ञा पा कर अपने काम पर लग गये । उन्हे तीनो लोक में एक भी ऐसा व्रह्ममन नही मिला जो किसे क घर भोजन ना किया हो । वे आकाश मार्ग यहि सोचते हुए जा रहे थे कि, राम जी का आदेश का कैंसे पालन किया जाए। तभी अचानक उन्हें आकाश मार्ग से ही रावण की सोने की लंका दिखाई दिया उनकी बांछे खिल गई और वे लंका कि ओर प्रथान किये । नारद जी को पता था कि , यह रावण कर्म से राक्षस है पर जन्म से वह व्रह्ममन है। वे मुनी विश्वसर्वा और कैकसी का पुत्र एक प्रचंड बिद्वान और सर्व वेदों के ज्ञाता है। वे लंका नगरी के राजा भी थे। इस लिए किसी के यहाँ भोजन का सवाल नही उठाता । इस लिए नारद जी रावण के पास लंका नगरी चले गये। वहां जा का नारद जी रावण से पुरी वात बताइ और अयोध्या जा कर भोजन करने की आग्रह किया। रावण भी उदारता दिखाते हुए नारद जी का आमंत्रण स्विकार कर लिया ।
रावण अयोध्या गये वहाँ सीता जी उनको छपनभोग का भोजन कराई। और बड़ी ही विनम्रता से पुछी महराज आपको दान में क्या दूँ, आप तो ब्राह्मण के साथ -साथ एक प्रतापी रजा भी है। तब रावण ने सीता जी से कहा में दान में कुछ नहीं लेना चाहता हु ,मेरी यही इच्छा है की जेसे में आज आपका आतिथ्य स्वीकार किया है इसी तरह आपको भी मेरा अतिथि बन कर मेरा आतिथ्य स्वीकार करना पड़ेगा मेरे लिए यही सबसे बड़ा उपहार होगा। सीता जी ने रावण को वचन दिया था, कि में एक दिन आपके नगर ने आऊंगा।
इसी लिए सीता जी रावण की लंका में गुजरना पड़ा था।